रविवार, 27 जुलाई 2014

बना न ले कहीं अपना वजूद औरत


ये औरत ही है !


पाल कर कोख में जो जन्म देकर बनती  है जननी 
औलाद की खातिर मौत से भी खेल जाती है .

बना न ले कहीं अपना वजूद औरत 
कायदों की कस दी  नकेल जाती है .

मजबूत दरख्त बनने नहीं देते  
इसीलिए कोमल सी एक बेल बन रह जाती है .

हक़ की  आवाज जब भी  बुलंद करती है 
नरक की आग में धकेल दी जाती है 


फिर भी सितम  सहकर  वो   मुस्कुराती  है 
ये औरत ही है जो हर  ज़लालत  झेल  जाती  है .

                                          शिखा कौशिक 
                           [vikhyaat  ]







शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

आमंत्रण....सृजन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था,राजी पुरम लखनऊ का वार्षिकोत्सव...डा श्याम गुप्त..

.तेरी तो हर बात ग़ज़ल ....डा श्याम गुप्त




तेरी तो हर बात ग़ज़ल                        

तेरे दिन और रात ग़ज़ल,
तेरी तो हर बात ग़ज़ल |

प्रेम-प्रीति  की रीति ग़ज़ल,
मुलाक़ात की बात ग़ज़ल |

मेरे यदि नग्मात ग़ज़ल,
तेरी हर आवाज़ ग़ज़ल |

तेरे दर का फूल ग़ज़ल,
पात पात हर पात ग़ज़ल |

हमें भुलादो बने ग़ज़ल,
यादों की बारात ग़ज़ल |

तू हंसदे होजाय  ग़ज़ल,
अश्क अश्क हर अश्क ग़ज़ल |

तेरी शह की बात ग़ज़ल,
मुझको तेरी मात ग़ज़ल |

तू हारे तो क़यामत हो,
तेरी जीत की बात ग़ज़ल |

हंस देख कर शरमाये,
चाल तेरी क्या बात ग़ज़ल |

मेरी बात पे मुस्काना,
तेरे ये ज़ज्बात ग़ज़ल |

इठलाकर लट खुल जाना ,
तेरा  हर अंदाज़ ग़ज़ल |

तेरी ग़ज़लों पर मरते ,
कैसी सुन्दर घात ग़ज़ल |

श्याम' सुहानी ग़ज़लों पर ,
तुझको देती दाद ग़ज़ल
||


 



रविवार, 20 जुलाई 2014

लखनऊ की निर्भया की कहानी, पिता की जुबानी;ये है उत्तर प्रदेश की हवा सुहानी

खनऊ की निर्भया की कहानी, पिता की जुबानी

story of lucknow gangrape victim

मोहनलालगंज कोतवाली में बैठे उस दुबले-पतले शख्स का शरीर कांप रहा था। चेहरा दर्द, चिंता, उलझनों और अबूझ सवालों से बोझिल हो चुका था। मन कहीं खोया हुआ था।

रह-रहकर आंखें भीग जाती थीं। रुलाई रोकने की कोशिश में कई बार चेहरा दोनों हथेलियों से ढक लिया। डीआईजी नवनीत सिकेरा ने उनसे बातचीत शुरू की तो आंखों से आंसुओं का सैलाब निकल गया। बोले, ‘ऐसा क्यों हो गया?’

यह शख्स बलसिंहखेड़ा प्राथमिक विद्यालय में दरिंदगी की शिकार युवती के पिता हैं। उन्होंने बताया कि बेटी हिम्मत हारने वाली नहीं थी। छह साल पहले पति की मौत के बाद से वह अकेले ही बच्चों को संभाल रही थी। बोले-ससुरालवालों ने भी मुंह मोड़ लिया।

बेटी के लिए जिंदगी का एक-एक दिन बड़ा मुश्किल था। फोन पर वह अपनी तकलीफों का जिक्र करती तो कलेजा मुंह में आ जाता।

अक्सर वह बेटी से सबकुछ छोड़कर घर आने की बात कहते थे, तो बेटी उनसे सिर्फ जमाने से लड़ने का हौसला और आशीर्वाद मांगती थी।

कहती थी, ‘कुछ सपने हैं, जिन्हें पूरा करना है।’
बातचीत के दौरान जब लहूलुहान बेटी की जीजिविषा के बारे में चर्चा शुरू हुई तो उन्होंने बताया कि बचपन से ही बहुत जुझारू थी। बड़ी होने के नाते उस पर जिम्मेदारियां ज्यादा थीं।

विपरीत परिस्थितियों में घबराने के बजाए वह हिम्मत से काम लेती थी। उन्होंने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए बेटी की शादी जल्दी कर दी थी।

उसने इंटर तक की पढ़ाई की थी। पिता ने बताया कि दो माह पूर्व परिवार में एक शादी के सिलसिले में वह घर आई थी। इसके बाद से उससे सिर्फ फोन पर ही बातचीत हो रही थी।

युवती के पिता ने बताया कि वह देवरिया में शिक्षण कार्य करते हैं। युवती उनके तीन बच्चों में बड़ी थी। उसकी शादी 15 साल पहले देवरिया में ही हुई थी।

युवक राजधानी के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में संविदा पर नौकरी करता था। उसके 13 साल की बेटी और छह साल का बेटा है। दामाद की किडनी खराब थीं। बेटी ने अपनी एक किडनी पति को दे दी थी।

छह साल पहले दामाद की मौत हो गई। उसकी जगह बेटी को अस्पताल में नौकरी दे दी गई। वह दोनों बच्चों के साथ किराए के मकान में रहती थी।

उन्होंने बताया कि बृहस्पतिवार दोपहर बेटी के घर न आने की जानकारी पाकर वह राजधानी पहुंचे। देर रात बेटी के साथ हुई हैवानियत की जानकारी मिली तो सदमा सा लग गया।
थाना में बैठे युवती के पिता ने नाती-नातिन का हालचाल लेने के लिए फोन लगाया तो माहौल गमगीन हो गया। नातिन की आवाज सुनते ही उनका गला भर आया।

बस मुंह से यही निकला, ‘गुड़िया तुम ठीक हो। कोई परेशानी तो नहीं।’ इसके बाद आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। उनकी यह हालत देखकर डीआईजी भी भावुक हो गए।
लखनऊ के मोहनलाल गंज में गैंगरेप के बाद जान गंवाने वाली युवती के गांव के लोग पूरे घटनाक्रम को लेकर अवाक हैं।

देवरिया जिले के गौरीबाजार क्षेत्र के इस गांव में शुक्रवार सुबह घटना का पता चला तो हर कोई सन्न रह गया। गांव के लोगों ने बताया कि पांच साल पहले बीमारी से पति की मौत हो जाने के बाद मृतक आश्रित के रूप में उसे लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में नौकरी मिल गई थी। वही पूरे घर का खर्च चलाती थी।

लखनऊ में ही बेटे और बेटी की पढ़ाई कराने के कारण, उसका गांव आना कम होता था। गांव वालों की चर्चा में दोनों बच्चों के भविष्य को लेकर भी सवाल उठाए जाते रहे।][अमर उजाला से साभार ]
     अभी दो दिन पहले ही ये समाचार समाचार पत्रों की सुर्खियां बना हुआ था और बता रहा था उत्तर प्रदेश के बिगड़ते हुए हालात की बदहवास दास्ताँ .एक तरफ महिलाओं के साथ उत्तर प्रदेश में दरिंदगी का कहर ज़ारी है और दूसरी तरफ कोई इसे मोबाईल और कोई नारी के रहन सहन से जोड़ रहा है .भला यहाँ बताया जाये कि एक महिला जो कि दो बच्चों की माँ है उसके साथ ऐसी क्रूरता की स्थिति क्यूँ नज़र आती है जबकि वह न तो कोई उछ्र्न्खिलता का जीवन अपनाती है और न ही कोई आधनिकता की ऐसी वस्तु वेशभूषा जिसके कारण आजके कथित बुद्धिजीवी लोग उसे इस अपराध की शिकार होना ज़रूरी करार देते हैं ?यही नहीं अगर ऐसे में उत्तर प्रदेश की सरकार यह कहती है कि यहाँ स्थिति ठीक है तो फिर क्या ये ही ठीक स्थिति कही जाएगी कि नारी हर पल हर घडी डरकर सहमकर अपनी ज़िंदगी की राहें तय करे .

ऐसे में बस नारी मन तड़प उठता है और बस यही कहता है -

जुर्म मेरा जहाँ में इतना बन नारी मैं जन्म पा गयी ,
जुर्रत पर मेरी इतनी सी जुल्मी दुनिया ज़ब्र पे आ गयी .
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जब्रन मुझपर हुक्म चलकर जहाँगीर ये बनते फिरते ,
जांनिसार ये फितरत मेरी जानशीन इन्हें बना गयी .
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जूरी बनकर करे ज़ोरडम घर की मुझे जीनत बतलाएं ,
जेबी बनाकर जादूगरी ये जौहर मुझसे खूब करा गयी .
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जिस्म से जिससे जिनगी पाते जिनाकार उसके बन जाएँ ,
इनकी जनावर करतूतें ही ज़हरी बनकर मुझे खा गयी .
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जांबाजी है वहीँ पे जायज़ जाहिली न समझी जाये ,
जाहिर इनकी जुल्मी हरकतें ज्वालामुखी हैं मुझे बना गयी .
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बहुत सहा है नहीं सहूँगी ,ज़ोर जुल्म न झेलूंगी ,
दामिनी की मूक शहादत ''शालिनी''को राह दिखा गयी .

शालिनी कौशिक 


  [कौशल ]

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

लिव-इन भावी पीढ़ी के भविष्य के साथ भद्दा मजाक

भारतीय संस्कृति में लिव-इन जैसी सोच को कभी वैधता प्रदान नहीं की जा सकती है क्योंकि हमारी संस्कृति भावी पीढ़ी के प्रति अपना कर्तव्य निभाने पर जोर देती है न कि केवल अपने जीवन के साथ प्रयोग करने पर .हर संतान को समाज में वैध संतान का दर्जा  प्राप्त करने का नैसर्गिक अधिकार है .कैसे कोई केवल आधुनिकता के नाम पर भावी संतान के भविष्य के साथ खेल सकता है ? इस प्रसंग को हम इस लघु -कथा के माध्यम से और अधिक आसानी से समझ सकते हैं -


सोनाक्षी क्या कहती हो -विवाह बेहतर है या लिव इन रिलेशनशिप ? सिद्धांत के बेधड़क  पूछे गए सवाल से सोनाक्षी आवाक रह गयी उसने प्रिया की और इशारा करते हुए कहा -''प्रिया से ही क्यों नहीं पूछ लेते !''सिद्धांत मुस्कुराता हुआ बोला ''ये सती-सावित्री के युग की है ये तो विवाह का ही पक्ष लेगी पर आज हमारी युवा पीढ़ी जो आजादी चाहती है वो तो लिव-इन रिलेशनशिप में ही है .'' प्रिया ने सिद्धांत को आँख दिखाते हुए कहा -''सिद्धांत मंगनी की अंगूठी अभी उतार कर दूँ या थोड़ी  देर बाद ..? इस पर सोनाक्षी ठहाका  लगाकर हस पड़ी और सिद्धांत आसमान की और देखने लगा .सोनाक्षी ने प्रिया की उंगली में पड़ी अंगूठी को सराहते हुए कहा ''...वाकई बहुत सुन्दर है !सिद्धांत आज की युवा  पीढ़ी की बात तो ठीक है ....आजादी चाहिए पर सोचो यदि हमारे माता-पिता भी लिव-इन -रिलेशनशिप जैसे संबंधों को ढोते  तो क्या हम आज गरिमामय जीवन व्यतीत करते और फिर भावी पीढ़ी का ख्याल करो जो बस यह हिसाब ही लगाती रह जाएगी कि हमारे माता पिता कब तक साथ रहे ?हमारा जन्म उसी समय के संबंधो का परिणाम है या नहीं ?हमारे असली माता पिता ये ही हैं या कोई और ?कंही हम अवैध संतान तो नहीं ?....और भी न जाने क्या क्या .....अपनी आजादी के लिए भावी पीढ़ी के भविष्य को बर्बाद करने का तुम्हे या तुम जैसे युवाओं को कोई हक़ नहीं !'' सोनाक्षी के यह कहते ही प्रिया ने सिद्धांत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -''अब कभी मत पूछना विवाह बेहतर है या लिव-इन-रिलेशनशिप .''सिद्धांत ने मुस्कुराते हुए ''हाँ'' में गर्दन हिला दी .

अब फैसला आपके हाथ में है -भावी संतानों की दृष्टि में आप अपने लिए सम्माननीय स्थान चाहते हैं अथवा निंदनीय .लिव-इन तो किसी भी सभ्य समाज में अपनाया नहीं जा सकता .जो इस जीवन-पद्धति को अपना रहे हैं वो तो उसी आदिकाल में लौट रहे हैं जहाँ न कोई समाज था ,न कोई नियंत्रण था और मानव जानवर के सामान अपना जीवन यापन करता था .
न कोई मर्यादा ..न कोई जवाबदेही
लिव-इन को कैसे कहा जा सकता है सही !!!


शिखा कौशिक 'नूतन '

सोमवार, 14 जुलाई 2014

कज़री.....बदरिया घिरि घिरि आये ...डा श्याम गुप्त....



 आजकल धूम-धूम के युग में हम कज़री एवं आल्हा के बोल भूलते जा रहे हैं ..सावन का मास है ...प्रस्तुत है एक कज़री ....

 बदरिया घिरि घिरि आये

आई सावन की बहार
बदरिया घिर घिर आये  |
गूंजें कज़री और मल्हार
बदरिया घिर घिर आये  |

रिमझिम रिमझिम पडत फुहारें
मुरिला पपिहा पीउ पुकारें |
चतुर टिटहरी निसि रस घोले
चकवा चकवी चाँद निहारें |

आये सजना नाहिं हमार
बदरिया घिर घिर आये  ||

घनन घनन घन जिय डरपाए
झनन झनन झन जल बरसाए |
प्यासी बिरहन बिरहा गाये
पावस तन मन को तरसाए |

दहके पावक बनी बयार
बदरिया घिर घिर आये |

पिया गए परदेश न आये
बैरी चातक टेर लगाए |
कागा बैठ मुंडेर न बोले
श्यामा शुभ सन्देश न लाये |

री अलि! कैसे पायल झनके
घुँघरू छनके, कंगना खनके |
सखि! कैसे करूँ श्रृंगार
बदरिया घिर घिर आये ||

आई सावन की बहार
बदरिया घिर घिर आये ||




सोमवार, 7 जुलाई 2014

''तलाक ''

''तलाक '' हो जाता है !

[photos google se sabhar ]

भावी पति की चाहत 
भावी पत्नी के बाल 
लम्बें होने चाहिए 
भावी पत्नी के बाल 
बढ़ जाते हैं झट से .

पति की चाहत 
पत्नी न पहने 
आधुनिक परिधान  
पत्नी साड़ी में 
लिपट  जाती है . 

पतिदेव की चाहत 
पत्नी रहे चौखट 
के भीतर..पत्नी 
घर में सिमट जाती है .

पत्नी की चाहत 
पतिदेव मुझे एक 
मानवी का सम्मान 
 तो दें कम से कम 
''तलाक '' हो जाता है .

                            शिखा कौशिक 
                             [विख्यात ]

शनिवार, 5 जुलाई 2014

औरत पे ज़ुल्म हो रहे कर रहा आदमी


औरत पे ज़ुल्म हो रहे कर रहा आदमी
सच्चाई को कुबूलना ये चाहते नहीं ,
गैरों के कंधे थामकर बन्दूक चलना
ये कर रहे हैं काम मगर मानते नहीं !
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औरत को जूती पैर की ही माने आदमी
सम्मान देने रोग मान पालते नहीं ,
ये चाहें इसपे बस हुक्म चलाना
 करना भला इसका कभी विचारते नहीं !
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औरत लुटा दे मर्द पर भले ही ज़िंदगी
वे रहते हैं कभी किसी मुगालते नहीं ,
खिदमत हमारी करना औरत की है किस्मत
करना है कुछ उसके लिए ये जानते नहीं !
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जनम-जनम का साथ है पत्नी पति का मांगती
ये पत्नी को दिल में कभी उतारते नहीं ,
चाह रखके बेटों की ये बेटियां हैं मारती
ये बुराई तक माँ के लिए हैं मारते नहीं !
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''शालिनी ''की तड़प का है ना सबूत कोई
अपने किये को ये कभी धिक्कारते नहीं ,
बेटी हो या बहन हो ,ये पत्नी हो या माँ हो
अपने को किसी हाल ये सुधारते नहीं !
...................................................................
शालिनी कौशिक
       [कौशल ]