बुधवार, 30 अप्रैल 2014

निंदा के पात्र बने रामदेव


संत कलान्तर से ही समाज में व्याप्त बुराईयों की निंदा आए हैं,व समाज को दिशा देते रहे हैं।जो कि उनका धर्म हैं। मगर संतो को व्यक्तिगत निंदा नहीं करनी चाहिए।जब कोई संत व्यक्तिगत निंदा करने लगता हैं तो वह स्वयम् निंदा का पात्र बन जाता हैं।
हाल ही में बाबा रामदेव राहुल गांधी पर रामवाण चलाते हुए चुक गए।दलित महिलाओं व भारतीय नारी का अपमान कर बैठे।परिणाम सरूप वह जिनकी महत्तवकांछाओं को पूर्ण करने में लगे हुए थे।वह भी उनके इस बयान से किनारा करते हुए,उनके बयान की निंदा कर रहें हैं। बाबा रामदेव और विवाद का यूं तो चौली दामन का साथ रहा हैं।लेकिन यह मामला जदा संवेदनशिल हैं क्योंकि यह आधी आवादी के मान, सममान,मर्यादा को चोट पहुचाता हैं।
प्रश्न सिर्फ यौग गुरू बाबा रामदेव के बयान का नहीं हैं,न ही भौगी आशाराम बापू का हैं।यह पूरे संत समाज पर लागू होता हैं। आख़िर वो समाज को किस रास्ते पर ले जाना चहाते हैं। यह बयान किसी नेता ने दिया होता तो और बात थी क्योंकि नेता तो जुबान के यूं भी कच्चे होते हैं।लेकिन यह संत के वचन हैं जिसकी गुंज दूर तक सुनाई देती हैं।संत समाज के माथे पे लगा यह वह कलंक हैं,जो गंगा नहाने पर भी नहीं धुलेगा।
                               
तरूण कुमार,सावन

सरोजा -कहानी



मैंने जब से होश संभाला था तब से अपने  संयुक्त  परिवार  में  बुआ  को ऐसा पाया जैसे सारी चंचलता त्याग कर गंगा मैय्या  शांत भाव से बही जा रही हो . बुआ न ज्यादा बोलती और  न ही आस-पड़ोस वाली औरतों के तानों का पलट कर जवाब देती .माँ और चाची ही उनके तानों पर भड़क जाती थी और ये कहकर कि ''जिस पर पड़ती है उसका दिल ही जानता है .''  उनकी जुबानों पर ताला लगा देती .बुआ को  केवल तब मुस्कुराते देखा जब पिता जी उनकी बचपन की शरारतों का जिक्र करते .माँ बताती जब मैं पैदा हुई तब बुआ ने हाई-स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी .बस उसके बाद से ही पिता जी को उनके विवाह की चिंता सताने लगी थी क्योंकि दादा-दादी तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे .एक -डेढ़ साल में जाकर रिश्ता तय हो पाया था .विवाह में पिता जी ने अपनी हैसियत के अनुसार खर्च किया था पर विवाह के एक साल बाद तक जब गौना न हुआ तो सारी बिरादरी में बुआ को लेकर अनर्गल बातें शुरू हो गयी .पिता जी बुआ के ससुराल गए और सारी स्थिति से उन लोगों को परिचित कराया .फूफा के बड़े भाई साहब ने बताया कि फूफा तो विवाह करना ही नहीं चाहते थे .वे तो जन-सेवा को ही अपने जीवन का उद्देश्य मानते हैं. विवाह तो घर वालों के दबाव में आकर कर लिया पर अब बुआ को वहां बुलाये जाने के पक्ष में नहीं हैं .खैर पिता जी के जोर देने पर उन्होंने बुआ को वहां बुलवा लेने का आश्वासन दिया .पिता जी ने घर आकर जब सारी स्थिति बतलाई उस दिन से बुआ का मान  इस संयुक्त परिवार में मानों घट ही गया . माँ-पिता जी भले ही बुआ को कितना भरोसा दिला देते कि तुम हमारे लिए वही 'सरोजा' हो जो विवाह से पूर्व थी पर बुआ जानती थी कि विवाहित लड़की का पीहर में रहना उसकी गरिमा कम कर देता है .न केवल समाज की दृष्टि में वरन स्वयं उस लड़की की खुद की नज़रों में भी .एक अनजाना अपराध-बोध उसे घेर लेता है कि वो भाई-भाभी पर एक बोझ बन गयी है .उसके कारण पूरा परिवार समाज में नीची दृष्टि से देखा जा रहा है .
                    बहरहाल बुआ के जेठ जी ने अपना कहा निभाया और विवाह के करीब ढाई साल बाद बुआ की विदाई हो पाई .अभी बुआ को ससुराल गए तीन महीने भी नहीं हुए थे कि एक दिन उनके जेठ जी अचानक हमारे घर आ पधारे .उनके चेहरे पर मायूसी थी .पिता जी से हाथ जोड़कर बोले -'' माफ़ी चाहता हूँ पर मेरे छोटे भाई पर अब मेरा बस नहीं .कहता है या तो यह रहेगी यहाँ पर या मैं . अपने विवाह को मात्र औचारिकता की संज्ञा देता है .बहुत समझाया पर मानता ही नहीं .आप अपनी बिटिया को यहीं ले आये .मैं नहीं चाहता कि वो घुट-घुट कर वहां रहे .वो तो गाय है .एक शब्द भी नहीं बोलती पति के खिलाफ.... पर मैं समझता हूँ .'' उनकी बात पर चाचा भड़क गए थे और लाल-पीले होते हुए बोले थे -'' भाई जी ! पगला गए हैं क्या दामाद जी ?सात-फेरे लेकर हमारी सरोजा को जो जीवन भर साथ निभाने के सात वचन दिए थे उनका कोई मोल नहीं ..कहते हैं औपचारिकता  मात्र था विवाह !!!हमारी सरोजा के जीवन के साथ ऐसा खिलवाड़  कैसे  कर सकते  हैं वे ? जन-सेवा तो गांधी जी ने भी की थी पर कस्तूरबा  जी  को त्याग तो नहीं दिया था !'' पिता जी बेबस होते हुए बोले थे -'' चुप हो जा छोटे ..ईश्वर की यही मर्ज़ी है तो ले आते हैं अपनी सरोजा को यही !''
                                         बुआ बुझे  दिल से वापस आ तो गयी थी पर फूफा की कोई बुराई करे उनके सामने ये उन्हें कभी अच्छा नहीं लगा .हर करवा-चौथ पर व्रत रखती और फूफा का फोटो देखकर व्रत खोल लेती .आस-पड़ोस की महिलाएं व्यंग्य करती -''ये कैसी सुहागन हैं !'' तो चुपचाप अपने कमरे में चली जाती .पिता जी अपने को जिम्मेदार मानते बुआ के दुखी जीवन के लिए तो बस इतना कहती -'' भाई जी आपने तो अच्छा देखकर ही चुना होगा इन्हें ..ये तो मेरे पूर्व-जन्म के कर्म हैं जो इनकी सेवा का सुख न मिला .'' चाचा के जोर देने पर बुआ ने आगे की पढाई पूरी की और प्राथमिक-विद्यालय में शिक्षिका लग गयी .
                                              मेरे बाद जब भाई पैदा हुआ तो माँ ने बुआ की गोद में देते हुए कहा था -'' ये तेरा ही बालक है ...इच्छा तो ये थी कि तेरे बालकों को खिलावे पर भगवान की मर्ज़ी !'' बुआ ने बाँहों में भाई को लेते हुए उसका माथा चूम लिया था और उनकी आँखें नम हो गयी थी मानों बरसों से सूखी जमीन पर बरखा की कुछ बूंदे टपक गयी हो ..कितने कठोर ह्रदय थे फूफा जिन्होंने बुआ की इच्छाओं-अभिलाषाओं को निर्ममता से कुचल डाला था अपने कथित जन-सेवा के संकल्प रुपी पत्थरों से .
                                                         अख़बारों  से ज्ञात हुआ कि फूफा एम.एल.ए का चुनाव लड़ेंगें  .अखबार मेज पर पटकते हुए चाचा बोले थे -''इस सब के लिए ही तो सरोजा को वनवासिनी बना डाला दामाद जी ने !'' आग तो पिता जी के मन में भी लगी थी जब उनके मित्र रामेश्वर बाबू ने बताया था कि '' दामाद जी ने नामांकन -पत्र में 'वैवाहिक-स्थिति का कॉलम व् पत्नी के  नाम का कॉलम '' खाली छोड़ दिया है .'' बुआ को पता चला तो गंभीर भावों के साथ अपने कमरे में चली गयी जैसे अग्नि-परीक्षा  देने के लिए माता सीता अग्नि में प्रवेश कर रही हो .पिता जी ने मुझे व् भाई को पीछे भेजा था .दस वर्षीय भाई ने जाते ही बुआ से पूछा था -'' बुआ फूफा जी को पकड़ कर लाऊँ क्या यहाँ ?'' बुआ  उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोली थी -'' इतनी  परवाह करता है बुआ की ..मेरा होता  तो ..!'' ये कहते-कहते बुआ रो पड़ी थी और मैं व् भाई उनसे लिपट कर तब तक रोते रहे थे जब तक वे ही चुप नहीं हो गयी थी .
                         फूफा एम.एल.ए. बनें ,फिर सी.एम. बने पर बुआ का नाम अपने साथ नहीं जोड़ा .मेरे विवाह पर अपने गहने माँ को थमाते हुए बुआ ने कहा था -'' भाई जी ने बड़े स्नेह से बनवाए थे पर मेरे किसी काम न आ सके ...संध्या पहनेगी तो लगेगा जैसे मैं ही नए रूप में सज-संवर  रही हूँ .'' माँ की रुलाई छूट गयी थी और चाची की आँखें भी भर आई थी .माँ  हाथ जोड़कर बुआ के सामने काफी देर खड़ी रही थी और बुआ ने उन्हें गले लगा लिया था . मेरी विदाई पर बुआ ने बस इतना कहा था -'' ससुराल में धीरज से काम लेना .ससुराल में बसने का सुख सबको   नहीं मिलता लाडो .'' ससुराल में रचते-बसते दो साल  कब बीत गए पता ही नहीं चला .एक दिन न्यूज चैनल पर देखा कि फूफा की पार्टी ने उन्हें पी.एम. पद का उम्मीदवार बनाया   .फूफा को मुस्कुराकर फूलों की  मालाएं  पहनते  देखकर दिल कड़वा हो गया और आँखें बंद करते ही दिखा  ''जैसे बुआ कंटक पथ पर नग्न पग अकेली बढ़ी जा रही है .' एम.पी. का चुनाव लड़ने के लिए ,चुनाव-आयोग के कड़े निर्देशों के कारण इस बार फूफा ने बुआ का नाम ''नामांकन -पत्र के पत्नी के कॉलम '' में भरा  तो दुनिया भर की मीडिया ने हमारे घर को घेर लिया .पिता जी ने यह कहकर कि -'' फूफा को पी.एम. बनाने की आस लिए बुआ चार-धाम की यात्रा पर चली  गयी हैं '' मीडिया से पीछा छुडाया .जबकि हम सभी जानते थे कि शिक्षिका के पद से रिटायर्ड हो चुकी   बुआ के चार-धाम तो उनका वही कमरा है जिसमे भगवान के अतिरिक्त यदि कोई फोटो है तो फूफा का ही है .बुआ ने तो  अग्नि के चारों  ओर लिए गए सातों वचन व् सातों फेरों का बंधन बखूबी निभाया पर फूफा ने एक कदम भी चलना मुनासिब न समझा .

शिखा कौशिक 'नूतन' 

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

दलित-महिलाओं का अपमान किया है बाबा रामदेव ने !



इतना गिरा हुआ बयान यदि कोई आवारा किस्म का व्यक्ति देता तो  जनता जूतो  से उसकी  पिटाई  की  मांग  करती  और बहुत संभव था खुद ही ये काम कर भी देती ...पर जब योगगुरु के नाम से विख्यात व्यक्ति ऐसा घटिया व् गैर-जिम्मेदाराना ब्यान देता है तब उसके लिए जनता क्या सजा मांगे ? घाटियांपन के रोज़ नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे इस व्यक्ति को बाबा कहना समस्त साधु -संत समाज का अपमान है .इस व्यक्ति ने कहा -राहुल दलित बस्ती में पि‍कनि‍क और हनीमून मनाने जाते हैं।''
                          इस व्यक्ति से पूछा जाना चाहिए कि क्या उसका मानना है कि-

* दलित-बस्ती में ऐसी लडकिया  रहती  हैं  जो  किसी  के लिए भी  ऐसे  कार्य हेतु उपलब्ध है ?
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* क्या राजनैतिक -विद्वेष में राहुल जी के खिलाफ बिना प्रमाण के ऐसे गंदे आरोप लगाकर वे अपने को देश-भक्त प्रदर्शित करना चाहते हैं ?
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* क्या गरीब बस्ती में जाना ,उनका हाल  -चाल पूछना गुनाह है जिसके  एवज  में ऐसे गंदे आरोप लगाये  जायेंगें  ?
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* अब जब आपने इतना संगीन आरोप राहुल जी पर लगाया है तब क्यों न आपसे इसका प्रमाण माँगा जाये और प्रमाण न देने पर आपको जेल भेज दिया जाये .

                             इस व्यक्ति ने दावा किया कि  '' 16 मई के बाद मैया और भैया इटली लौट जाएंगे।'' ऐसा लगता है मैया-भैया इटली जाये या नहीं पर ये व्यक्ति शीघ्र अपनी ससुराल जाने वाले हैं .जेल की हवा में कौन सा योग इनके लिए ठीक रहेगा इस पर  सोच-विचार इन्हें शीघ्र ही कर लेना चाहिए और हां जो स्त्रियां इन तथा-कथित बाबा के योग-शिविर में जाती हैं ,वे इनके शिविरों में जाने से पहले सोच लें कि ये महिलाओं के प्रति कैसे विचार रखते हैं क्योंकि इनके इस बयान ने दलित-लड़कियों व् महिलाओं को जितना अपमानित किया है उतना तो राहुल जी को भी नहीं !

शिखा कौशिक 'नूतन' 

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

उमा भारती जी सबसे ज्यादा ताकतवर है घरेलू महिला !



उमा भारती जी ने प्रियंका  गांधी  जी द्वारा अपने पतिदेव पर राजनैतिक -विद्वेष के कारण किये जा रहे  अनर्गल आरोपों पर पलटवार करने पर कहा है  कि -
'' 'वाड्रा को जेल भेजने की बात पर घरेलू महिला की तरह रो रही हैं प्रियंका .उन्होंने कहा कि प्रियंका से उनका कोई मुकाबला नहीं है। प्रियंका घरेलू महिला हैं, जबकि वह चार बार विधायक व पांच बार सांसद रह चुकी हैं। एक बार मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री भी रही हैं। प्रियंका को राजनीति की जानकारी भी नहीं है।.''
                       मैं उमा जी से केवल इतना  पूछना  चाहती  हूँ   कि वे प्रियंका जी को घरेलू औरत  कहकर   प्रियंका जी का अपमान  करना  चाहती  हैं या घरेलू  औरत  को कमजोर  , परस्थितियों  का सामना  न  कर सकने  वाली  ,अनपढ़  ,गंवार  और  भी  न  जाने  क्या  प्रदर्शित  कर उसका  अपमान  करना  चाहती  हैं .
       यदि आज  समाज के स्वस्थ निर्माण में किसी का सर्वाधिक योगदान है तो वो केवल इस घरेलू महिला का  ही है .इस घरेलू महिला ने पति -बच्चों को हर  परिस्थिति  में संभाला है .इसी घरेलू महिला की प्रेरणा  से संतानें विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी का झंडा गाड़ती  हैं .यही घरेलू महिला रात भर जागकर परीक्षाओं के समय बच्चों को चाय बना -बना कर देती है और परिवार में किसी भी दुर्घटना के समय अपने आंसू पी  कर लड़खड़ाते  परिवार की  बैसाखी बन जाती है .इस घरेलू महिला को एक  शब्द भी कहते समय उमा जी को सोच लेना चाहिए कि विधायक -सांसद  तो ये भी बन सकती है पर क्या कोई विधायक या सांसद  महिला सारे  दिन केवल इस इंतज़ार में खाना बनाकर रख सकती है कि उसके बच्चे -पति भूखे -प्यासे बाहर   से आयेगें और वो उनके लिए खाना परोसेगी ,बच्चों की  कच्ची-पक्की बातें  सुनकर  उनका नैतिक मार्ग-दर्शन  करेगी  और अपने परिवार को ,अपने बच्चो को कभी समाज-विरूद्ध कार्यों में नहीं पड़ने देगी  .उमा जी की माता  जी भी तो घरेलू महिला रही होंगी  .क्या उमा जी ने उन्हें  कमजोर पाया  ?
         उमा जी को तुरंत  अपने इस बयान पर माफ़ी  मांगनी  चाहिए क्योंकि  यदि घरेलू महिला को वे कमजोर कहेंगी  तो ये सूर्य  की ओर  धूल  उछालने  जैसा  होगा  जो  पलट  कर डालने  वाले  के मुंह  पर ही  पड़ेगी  .ऐसा ब्यान एक महिला का दूसरी महिला के खिलाफ सबसे अभद्र श्रेणी का बयान कहलाया जायेगा .

शिखा  कौशिक 'नूतन'  

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

भारत की ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ परंपरा-हरि मोहन

लिव इन रिलेशनशिप से मिलने-जुलने वाली यह परंपरा राजस्थान में आज भी कायम है। इस प्रथा का नाम है ‘नाता प्रथा’। राजस्थान की इस इस प्रथा के मुताबिक, कोई शादीशुदा पुरुष या महिला अगर किसी दूसरे पुरुष और महिला के साथ  अपनी इच्छा से रहना चाहती है तो वो अपने पति या पत्नी से तलाक लेकर रह सकती है। इसके लिए उन्हें एक निश्चित राशि चुकानी पड़ती है।

इस प्रथा में महिला और पुरुष के बच्चों और दूसरे मुद्दों का निपटारा पंचायत करती है। उन्हीं के निर्णय के हिसाब से तय किया जाता है कि बच्चे किसके साथ रहेंगे। ये इसलिए किया जाता है कि ताकि बाद में महिला या पुरुष के बिच किसी चीज़ को लेकर मतभेद न हो। वो अपनी जिंदगी अपनी पंसद के व्यक्ति या स्त्री के साथ आराम से काट सके।

राजस्थान में इस प्रथा का चलन ब्राह्मण, राजपूत और जैन को छोड़कर बाकी की जातियों में देखा जा सकता है। गुर्जरों में यह परंपरा यहां खासकर लोकप्रिय है। इस प्रथा से यहां के पुरुष और महिलाओं को तलाक के कानूनी झंझटों से छुटकारा तो मिलता ही है साथ  ही में अपनी पसंद का जीवन साथी के साथ रहने का हक भी मिल जाता है।

हालांकि, बदलते वक्त के साथ इस प्रथा में भी कई विसंगतियां आई हैं। इसका स्वरूप भी बदला है। कई बार तो इस प्रथा की आड़ में महिलाओं को दलालों के हाथों बेचने का घिनौना खेल भी खेला जाता है।

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

बातें-कुछ दिल की, कुछ जग की: “परछाइयों के उजाले” – आईना ज़िंदगी का

बातें-कुछ दिल की, कुछ जग की: “परछाइयों के उजाले” – आईना ज़िंदगी का: कविता वर्मा जी के कहानी लेखन से पहले से ही परिचय है और उनकी लिखी कहानियां सदैव प्रभावित करती रही हैं. उनका पहला कहानी संग्रह “परछाइयों क...

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

माँ

माँ शब्द ही एक सुन्दर एहसास है
ममता, उदारता, नम्रता
प्रेम और सम्मान का  !

आशीर्वाद , निर्मलता
ईश्वर और उसके विश्वास का !!

बेटा सदा माँ का लाडला
सुन्दर और सुशील
और कोमल होता है !

सदा पाँच साल का छुटकू
बदमास और
सुकुमार होता है  !!

बच्चा भी सदा माँ के पास
महफूज, निर्भय
और समशेर होता है !

एक पल भी माँ से जुदा
नहीं रह सकता
वो बच्चा बिना माँ के ढेर होता है !!

जब होता है बच्चा छोटा
रखती है पास, पिलाती है दूध
बच्चे को मातृत्व का एहसास होता है  !

जब बच्चा बड़ा होकर
माँ की सेवा करता है
तब माँ को भी अपनी ममता पर नाज होता है !

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मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

मां

 ममता और सौहार्द से बनी हुयी है माँ  !
कोई कहे कुमाता कोई माता लेकिन है माँ  !!
जिसके स्पर्श भर से बेटा  प्रसन्न हो उठता है !
जिसके उठने से ही सुरज भी उठता है !!
माँ  को देखकर बच्चा पुलकित  हो उठता है !
बच्चो को पाकर माँ  का रोम-रोम खिल उठता है !!
यौवन मे भी माँ  को बेटा लगता प्यारा !
बेटा समझ न पाता मन का है कच्चा !!
सारी दुनिया समझे उसे घोर कपुत !
माँ  को लगता बेटा सच्चा,वीर,सपुत !!
माँ  शब्द मे है ममता का एहसास  !
बरसो है पुराना माँ  का इतिहास !!

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सोमवार, 14 अप्रैल 2014

मधुसूदन जी को क्षमा मांग लेनी चाहिए।

सुष्मा स्वराज पर आपत्तिजनक बयानमिस्त्री की शिकायत
[सन्दर्भ -सुष्मा स्वराज ने चुवावों को लेकर एक टिप्पणी देते हुए कहा था कि जल्द ही अच्छी खबर मिलने वाली है।जिसपर अभद्रतापूर्ण टिप्पणी करते हुए मधुसूदन मिस्त्री ने कहा था कि इसके लिए पहले स्वराज को डॉक्टरी जांच करानी पड़ेगी तभी पता चलेगा कि अच्छा समाचार है अथवा नहीं। ]

मधुसूदन जी को अपने सुषमा स्वराज जी पर किये गए अभद्र बयान हेतु बिना समय गंवाए क्षमा मांग लेनी चाहिए।  भारतीय -संस्कृति में शत्रु की स्त्री के लिए भी सम्मान युक्त शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। ये मोदी -संस्कृति है जो सोनिया जी के प्रति व्यंग्यपूर्ण भाव में ''मैडम  सोनिया '' बोलकर जनता से तालियाँ बटोरती है। मधुसूदन जी को  यह भी नहीं भूलना चाहिए कि राहुल जी तो कांग्रेसी नेताओं द्वारा विपक्ष के पुरुष नेताओं पर किये गए अभद्र बयानों तक को पसंद नहीं करते हैं तब सुषमा जी जैसी गरिमापूर्ण विपक्ष की नेत्री पर एक कॉंग्रेसी नेता द्वारा अभद्र बयान देना कैसे पसंद किया सकता है। बेहतर है मोदी -संस्कृति बीजेपी तक ही सीमित रहे। हमें तो कॉंग्रेसी संस्कृति का सम्मान करना ही चाहिए  -

हमें मालूम है वो पीठ पीछे  खंजर चुभाते हैं
मगर हम फूल देकर जख्मों का बदला चुकाते हैं !''

  भारतीय नारी की गरिमा को बनाये रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।

जय -हिन्द , जय -भारत

शिखा कौशिक 'नूतन '

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

नारी (एक बेबसी)

जब नारी ने जन्म लिया था ! 
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !! 
उसकी मा थी लाचार ! 
लेकीन सब थे कटु वाचाल !! 
वह कली सी बढ्ने लगी ! 
सबको बोझ सी लगने लगी !! 
वह सबको समझ रही भगवान ! 
लेकीन सब थे हैवान !! 
वह बढना चाहती थी उन्नती के शिखर पर ! 
लेकीन सबने उसे गिराया जमी पर !! 
सबने कीया उसका ब्याह ! 
वह हो गयी काली स्याह !! 
ससुर ने मागा दहेग हजार ! 
न दे सके बेचकर घर-बार !! 
सास ने कीया अत्याचार ! 
वह मर गयी बिना खाये मार !! 
पती ने ना दीया उसे प्यार ! 
पर शिकायत बार-बार !! 
किसी ने ना दिखायी समझदारी ! 
यही है औरत कि बेबसी लाचारी !! 
ना मीली मन्जिल उसे बन गयी मुर्दा कन्काल ! 
सबने दिया अपमान उसे यही बन गया काल !! 
यही है नारी कि बेबसी यही है नारी की मन्जिल ! 
यही हिअ दुनीय कि रीत यही है मनुष्य का दिल !! 
मै दुआ करता हू खुदा से किसी को बेटी मत देना ! 
यदी बेटी देना तो इन्सान को हैवनीयत मत देना !! 

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श्रुतियों व पुराण-कथाओं वैज्ञानिक तथ्य----कावेरी की कथा ...डा श्याम गुप्त ...


                             

 श्रुतियों व पुराण-कथाओं में भक्ति-पक्ष के साथ व्यवहारिक-वैज्ञानिक तथ्य-.

कावेरी की कथा......


     

कावेरी उद्गम -तलाकावेरी -कुर्ग
कावेरी

कावेरी -मंथर-मंथर




 

 

 

 

 

कावेरी-होनेगोक्कल फाल्स

 

 

 कावेरी की कथा .....

                                                       
                    भारतीय  पुराण-कथाएं सदा अन्योक्ति कूट व सूत्र रूप में कही गयी हैं , परन्तु उनके 
वास्तविक/तात्विक अर्थ व्यवहारिक, नीति-परक व सामाजिक नीति व्यवस्था के होते है | अर्थ न समझने
 के कारण लोग उन्हें प्रायः कपोल-कल्पित कह कर  उनका उपहास भी करते हैं और हिन्दू सनातन-धर्म 
के उपहास के लिए उदाहरण भी
 कावेरी नदी की कथा का भी यही तथ्य है जो नारी जीवन-व्यवहार, सखियाँ,पिता-पुत्री प्रेम की व्याख्या 
भी है...

    स्थानीय..कर्मकान्ड  केअनुसार कावेरी के उदगम-स्थान पर हर साल सावन के महीने में बड़ा भारी उत्सव  
मनाया जाताहै। यह है कावेरी की विदाई का उत्सव कुर्ग के सभी हिन्दू लोग, विशेषकर स्त्रियां, इस उत्सव में 
 बड़ी श्रद्धा के साथ भाग  
लेती हैं।उस दिन कावेरी की मूर्ति की विशेष पूजा होती है। 'तलैकावेरी' कहलानेवाले उदगम-स्थान पर सब स्नान 
 करते हैं। स्नान करनेके बाद प्रत्येक स्त्री कोई  कोई गहना, उपहार के रुप में, उस तालाब में डालती है। यह दृश्य 
 ठीक वैसा ही होता  है, जैसा कि नईविवाहित लड़की की विदाई का दृश्य |
कावेरी की पौराणिक कथा व स्थानीय जनश्रुति यह है----
           सहा-पर्वत ने अपनी लजीली बेटी कावेरी को उसके पति समुद्रराज के पास भेजा। जब बेटी घर से विदा 
 होकर चली गईतब सहा-पर्वत को भय हुआ कि कहीं ससुरालवाले मेरी बेटी को गरीब  समझ लें। इसलिए उसने  
कनका नाम की युवती  को कईउपहारों के साथ दौड़ाया और कहा कि तुम जल्दी जाकर कावेरी के साथ हो लो।
             
कनका चली गई और 'भागमंडलम' नामक स्थान पर कावेरी से मिली। उपहार का शेष भाग यहीं पर  
कावेरी को मिला,इस कारण इस स्थान का नाम 'भागमंडलम' पड़ा। परन्तु पिता सहा-पर्वत का भय अब भी दूर 
 नहीं हुआ। उसे लगा  कि मैंने पुत्रीको उतने उपहार नहीं दिये, जितने कि मैं दे सकता था। उसने  हेमावती  नाम की दूसरी लड़की को बुलाया और बहुत से उपहारदेकर कहा कि तुम किसी ओर रास्ते से तेजी
  से जाओ। हेमावती स्वयं अपनी सहेली के चली जाने पर दुखी थी।  इसलिए सहा-पर्वत की आज्ञा से वह बहुत 
 प्रसन्न हुई और आंख मूंद कर भागी।

             
उधर कावेरी कनका से मिलने के बाद बहुत प्रसन्न हुई ओर विदाई का दु: भूल गई। 'भागमंडलम' से 
 'चित्रपुरम ' नामक स्थान  तक दोनों सहेलियां ऊंची-ऊंची चट्रटानों के बीच में हंसती खेलती, किलोलें करती हुई चलीं,  
परन्तु "चित्रपुरम' पहुंचने के बाद उनके कदम आगे नहीं बढ़े,  क्योंकि वे कुर्ग की सीमा पर पहुंच गई थीं।  आगे मैसूर राज्य  गया था। उसमें प्रवेश करने का मतलब नैहर से सदा के लिए बिछुड़ना था। इस कारण वे  
असमंजस में पड़ गई और ३२ कि.मी. तक कुर्ग और मैसूर की सीमा से साथ-साथ चलीं  चित्रपुरम से 'कण्णेकाल' के आगे कावेरी भारी मन से अपने पिता के घर से सदा के लिए बिछुड़ गई। बिछोहका 
 दु: उसे इतना था कि वह मैसूर के हासन जिले में  पहाड़ी चट्रटानों के बीच में मुंह छिपाकर रोती हुई चली। 
 तिप्पूर  नामक स्थान पर  वह  उत्तर  की ओर मुड़ी,  मानो पिता के घर लौट आयगी,  परन्तु देखती क्या है कि  उसकी सहेली हेमावती उत्तर से बड़ेवेग से चली  रही है। उसी स्थान पर दोनों सहेलियां गले मिलीं।

                   कावेरी नदी का वास्तविक भौगोलिक स्वरुप देखिये... बिलकुल पौराणिक 
अनुश्रुति व कथ्यों से समानता है ..-----


कावेरी के जन्म  - अगस्त्य ऋषि कावेरी को कैलाश पर्वत से लेकर आये थे। एक बार भयंकर सूखा पड़ा जिससे 
दक्षिण भारत में स्थिति बहुत ख़राब हो गयी। यह देखकर अगस्त्य ऋषि बहुत दुखी हुए और मानव जाति को 
बचाने के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा की अगर वे कैलाश पर्वत से बर्फीला पानी लेकर
 जाएँ तो दक्षिण में नदी का उद्गम कर सकतें हैं। अगस्त्य ऋषि कैलाश पर्वत पर गए, वहां से बर्फीला पानी 
अपने कमंडल में लिया और दक्षिण दिशा की और लौट चले। वें नदी के उद्गम स्थान की खोज करते हुए कुर्ग 
पहुंचे। उचित उद्गम स्थान की  खोज करते-करते ऋषि थक गए और अपना कमंडल भूमि पर रखकर विश्राम 
करने लगे। तभी वहां पर एक कौवा उड़ते हुए आया और कमंडल पर बैठनेलगा। कौवे के बैठते ही कमंडल उलट
 गया और उसका पानी भूमि पर गिर गया। जब ऋषि ने यह देखा तो उन्हें बहुत क्रोध आया। लेकिन तभी वहां 
गणेश जी प्रकट हुए और उन्होंने ऋषि से कहा कि मैं ही कौवे का रूप धारण करके आपकी मदद के लिए आया 
। कावेरी के उद्गम के लिए यही स्थान उचित है। यह सुनकर ऋषि प्रसन्न हुए और भगवान गणेश अंतर्ध्यान 
हो गए। 


         कावेरी कर्नाटक की पूर्व कुर्ग रियासत से निकलती है। यह पूर्व मैसूर राज्य को सींचती हुई दक्षिण 
पूर्व की ओर बहती है और तमिलनाडु के एक विशाल प्रदेश को हरा-भरा बनाकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
 इस लम्बी यात्रा में कावेरी का रुप सैकड़ो बार बदलता है। कहीं वह पतली धार की तरह दो ऊंची चट्रटानों के  
बीच बहती है, जहां एक छलांग में उसे पार कर सकते है कहीं उसकी चौड़ाई डेढ़ कि.मी. के करीब होती है ओर 
वह सागर सी दिखाई देती है कहीं वह साढ़े तीन सौ फुट की ऊंचाई से जल प्रपात के रुप में गिरती है, जहां 
उसका भीषण रुप देखकर और चीत्कार सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है,कहीं वह इतनी सरल और प्यारी होती है 
कि उस पर बांस की लकड़ी का पुल बनाकर लोग उसे पार कर जाते हैं।
       पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में एक सुन्दर राज्य है, जिसे कुर्ग कहते हैं। राज्य में एक पहाड़ का नाम ...
 सहापर्वत है। इस पहाड़ को 'ब्रह्माकपाल' भी कहते हैं।
               
इस पहाड़ के एक कोने में एक छोटा सा तालाब बना है। तालाब में पानी केवल ढाई फुट गहरा है। इस  
चौकोर तालाब काघेरा एक सौ बीस फुट का है। तालाब के पश्चिमी तट पर एक छोटा सा मन्दिर है। मन्दिर के  
भीतर एक तरुणी की सुन्दर मूर्तिस्थापित है। मूर्ति के सामने एक दीप लगातार जलता रहता है।
                   
यही तालाब कावेरी नदी का उदगम-स्थान है। पहाड़ के भीतर से फूट निकलनेवाली यह सरिता पहले 
 उस तालाब मेंगिरती है, फिर एक छोटे से झरने के रुप में बाहर निकलती है। देवी कावेरी की मूर्ति की यहां पर 
 नित्य पूजा होती है। कावेरी कास्रोत कभी नहीं सूखता।

                     
कावेरी कुर्ग से निकलती अवश्य है, पर वहां की जनता को कोई लाभ नहीं पहुंचाती। कुर्ग के घने  
जंगलों में पानीकाफी बरसता है, इस कारण वहां कावेरी का कोई काम भी नहीं है, उल्टे कावेरी कुर्ग की दो और 
 नदियों को भी अपने साथ मिलालेती है और पहाड़ी पट्रटानों के बीच में सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलती, 
 रास्ता बनाती, मॅसूर राज्य की ओर बढ़ती है।

                  
कनका से मिलने से पहले कावेरी की धारा इतनी पतली होती है कि उसे नदी के रुप में पहचानना भी 
 कठिन होता है।कनका से मिलने के बाद उसे नदी का रुप और गति प्राप्त होती है। सहा'पर्वत से बहनेवाले सैकड़ों 
 छोटे-छोटे सोते भी यहां परउसमे आकर मिल जाते हैं। इस स्थान को 'भागमंडलम' कहते हैं। हेमावती नदी 
 कर्नाटक राज्य के तिप्पूर नामक स्थान पर कावेरी से आकर मिलती है।


         तमिल भाषा में कावेरी को प्यार से 'पोन्नी' कहते हैं। पोन्नी का अर्थ है सोना उगानेवाली। कहा जाता
 है किकावेरी के जल में सोने की धूल मिली हुई है। इस कारण इसका यह नाम पड़ा। जानने योग्य बात यह है
 कि कावेरी मेंमिलने वाली कई उपनदियों में से दो के नाम कनका और हेमावती हैं। इन दोनों नामों में भी सोने
 का संकेत है।
       
------ कथा का तात्विक अर्थ भौगोलिक वर्णन है तथा नैतिक (एथीकल) अर्थ पिता की पुत्री के 
प्रति   चिंता का सखियों के प्रेम का सुन्दर समन्वयात्मक वर्णन|-----|
कावेरी बांध