गुरुवार, 11 जुलाई 2013

ऐसी सुहागन से विधवा ही भली .'' -लघु- कथा

ऐसी सुहागन से विधवा  ही  भली .'' -लघु- कथा  
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पति के शव के पास बैठी ,मैली धोती के पल्लू से मुंह ढककर ,छाती पीटती ,गला  फाड़कर चिल्लाती सुमन को बस्ती की अन्य महिलाएं ढाढस  बंधा रही थी  पल्लू के भीतर  सुमन की आँखों से एक  भी  आंसू  नहीं  बह  रहा था  और  उसका दिल  कह  रहा था  -''अच्छा   हुआ हरामजादा ट्रक  के नीचे  कुचलकर मारा  गया  . मैं  मर  मर  कर  घर  घर  काम करके  कमाकर   लाती   और  ये   सूअर   की औलाद  शराब में  उड़ा   देता .मैं  रोकती  तो  लातों -घूसों से  इतनी   कुटाई   करता   कि हड्डी- हड्डी  टीसने  लगती  . जब चाहता  बदन नोचने    लग  जाता  और अब  तो जवान  होती  बेटी  पर भी ख़राब  नज़र  रखने  लगा  था  .कुत्ता  कहीं  का  ....ठीक  टाइम  से  निपट  गया  .ऐसी  सुहागन  से  तो मैं विधवा  ही  भली .'' सुमन  मन  में ये सब सोच  ही  रही  थी  कि  आस  पास  के मर्द  उसके  पति  की  अर्थी  उठाने  लगे  तो सुमन  बेसुध  होकर बड़बड़ाने लगी -  ''   हाय ...इब मैं किसके लिए सजूँ सवरूंगी ......हाय मुझे भी ले चलो ..मैं भी इनकी चिता पर जल मरूंगी ....'' ये कहते कहते वो उठने लगी तो इकठ्ठी  हुई महिलाओं ने उसे कस कर पकड़ लिया .उसने चूड़ी पहनी कलाई ज़मीन पर दे मारी
सारी चूड़ियाँ चकनाचूर हो गयी और सुमन  दिल ही दिल में सुकून   की साँस लेते हुए बोली  -'' तावली ले जाकर फूंक दो इसे ...और बर्दाश्त नहीं कर सकती मैं .''

शिखा कौशिक 'नूतन' 

10 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सार्थक सन्देश देती लघु कथा मन को गहराई तक छू गयी . आभार आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .आप भी पूछें कैसे करेंगे अनुच्छेद 370 को रद्द ज़रा ये भी बता दें शाहनवाज़ हुसैन .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,

virendra sharma ने कहा…

छोटे होने के फायदे .लघु रूपा सतनामी कथा .बेहतरीन दस्तावेज़ हमारे वक्त से रुबा रु ॐ शान्ति

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

पत्नी ही नहीं अगर कोई आदमी किसी भी महिला पर हाथ उठाता है तो मैं उसे इंसान नहीं जानवर मानता हूं। कथा आदमी का जिस चरित्र का आपने जिक्र किया है, अखबारों में कई बार ऐसी घटनाएं पढ़ता हूं, मन खिन्न होता है, गुस्सा भी आता है। खैर ऐसे लोग हमेशा ही निंदा के पात्र रहेंगे।

लेकिन शिखा मुझे आपसे शिकायत है।
आप वैसे तो दूसरी महिलाओं को भाषा की मर्यादा और नारी की गरिमा पर बहुत ज्ञान देती हैं।
मुझे लगता है कि एक पीडित नारी की आड़ में आपने जिस शब्दों का इस्तेमाल किया है, इसे सभ्य समाज में जायज नहीं ठहराया जा सकता।
आप अपनी बातों को भाषा की गरिमा में रहते हुए भी कह सकतीं थी।
मुझे आपकी लेखनी से शिकायत नहीं है, आप कुछ भी लिखिए, लेकिन मेरा मानना है कि इस तरह के शब्दों के इस्तेमाल के बाद आपने दूसरों को ज्ञान देने का अधिकार खो दिया है।

अच्छा आप उस आदमी जो पत्नी को पीटता है, के लिए अपशब्द इस्तेमाल करतीं तो भी गनीमत था, आप तो उसके पिता को गाली दे रही हो,

जैसे सुअर की औलाद, हरामजादा.....

बहरहाल मुझे व्यक्तिगत रूप से आपकी भाषा पर सख्त एतराज है।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

mahendra jee ,

apake apane vichar hai, lekin ye galiyan kya isa samaj men dee nahin jati hai. aurat to kam hi aise shabdon ka istemal karti hogi lekin purush stri ke liye kitne pratishat aise shabd prayog karta hai. isake baare men aapako bhi gyat hoga .
maine bade bade padhe likhe prof. star ke logon ko aise shabdon ko prayog karte dekha hai.
aisi ghatnayen satya ka ek darpan hai bas aur kuchh nahin.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

रेखा दी,
नमस्ते !

मैने तो अपने कमेंट की शुरुआत ही इस बात से की है कि अगर आप पत्नी ही नहीं किसी भी महिला पर हाथ उठाते हैं तो आप इंसान नहीं जानवर हैं।

आप कह रही हैं कि बड़े बड़े लोग ऐसी गाली देते हैं, देते होंगे । लेकिन ऐसा करने वाले हमारे , आपके या फिर समाज के " आयडल " थोड़े हैं कि जो वो कर रहे हैं, उसका हम सब को अनुसरण करना चाहिए।

फिर दीदी भारतीय नारी तो त्याग और बलिदान की देवी कही जाती है, आप हमसे बेहतर जानती हैं।

वैसे मेरी शिकायत सिर्फ अभद्र और गैरमर्यादित भाषा को लेकर है। और हां मेरी बात से अगर किसी की भावना को ठेस पहुंची है तो मैं माफी चाहता हूं, हमारे कमेंट को डिलिट कर दें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।

vandana gupta ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(13-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

Shikha Kaushik ने कहा…

आपको मेरी भाषा पर एतराज हो सकता है पर इस लघु कथा में मैं हूँ ही कहाँ ?ये एक पीड़ित नारी सुमन है जो अपनी भाषा में ही अपनी बात कहेगी ..मेरी भाषा में नहीं .मैं चाहकर भी अपने कथा के पात्रों से अपनी भाषा में नहीं बुलवा सकती हूँ ...ये कथाकार होने के नाते मेरा फ़र्ज़ है कि मैं पात्रों को उनकी भाषा में बोलने दूं .आपने लघु कथा को जिया नहीं केवल पढ़ा है शायद इसीलिए आपका ध्यान सुमन के दर्द पर नहीं गया बल्कि मेरी भाषा पर आपत्ति है .खैर मैं भी विवश हूँ पात्र की भाषा में मैं मिलावट नहीं कर सकती .जैसे सुअर की औलाद, हरामजादा.....की जगह रास्कल ,बास्टर्ड नहीं लिखा जा सकता है ...बाकि rekha ji ne उत्तर दे ही दिया है .

Shalini kaushik ने कहा…

@ mahendr ji shikha ji kee jis bhasha par aap aitraj kar rahe hain usse to yahi lagta hai ki aap hamare samaj kee bhasha ko jante hi nahi hain kyonki yahan shikha ji ne jo bhi likha hai vah samaj me prayukt bhasha hai aur aap aalekh likhte hain kabhi intarview likhiye aur jiska interview likha hai uski bhasha kee jagah apni bhasha likhiye tab dekhiye kya prabhav aata hai .munshi premchan v maitriyi pushpa ji ko padhiye fir shikha ji ke bare me aapke vichar badal jayenge.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

शालिनी जी,
चलिए कोई बात नहीं, मैं और पढ़ने की कोशिश करूंगा। शायद आप सबके लेख को समझने की क्षमता मेरे अंदर नहीं है।

बहरहाल कुतर्क का कोई जवाब नहीं होता है। खुद अभद्र, असंसदीय, गैरमर्यादित भाषा, गाली लिखते रहिए और दूसरों को आइना दिखाइये।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

जिस समाज की चर्चा शालिनी जी ने की है वहां ये गालियाँ उनकी आदत,और जीवन पद्धति का एक हिस्सा हैं,आदमी के हाथ चलाने पर वे ज़बान चलाती हैं .लेखन की शालीनता की रक्षा के लिये उन्हें बचा जाना अलग बात है. पर उससे इस पीड़िता के मन की कटुता और आक्रोश की व्यंजना नहीं हो सकेगी.