शनिवार, 31 दिसंबर 2011

हिन्दी विकीपीडिया और कविताकोश पर काव्य-संग्रह ‘टूटते सितारों की उडान’ का लिंक

होनहार विरवान के होत चीकने पात कहावत को चरितार्थ करते हुये ब्लाग जगत के सक्रिय ब्लागर श्रीयुत सत्यम् शिवम् जी के द्वारा ‘टूटते सितारों की उडान’ नामक काव्य-संग्रह का संपादन करते हुये इसे उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ द्वारा प्रकाशित कराया गया है। इसमें ब्लाग जगत से जुडे बीस कवियों की रचनायें सम्मिलित की गयी हैं जिसमें छः प्रमुख महिला ब्लागर भी सम्मिलित हैं।

संग्रह के नाम के अनुरूप इस संग्रह में सम्मिलित सभी रचनाकारों की रचनाऐं जीवन की आपा धापी में पल पल बिखरते जा रहे टूटते , छटपटाते रिश्तों का सच प्रगट करती हुयी सी जान पडती हैं। भारतीय नारी ब्लाग हेतु इस संग्रह मे सम्मिलित महिला रचनाकारों की रचनाओं की बानगी प्रस्तुत है जिसमें उन्होंने महानगरीय जीवन की भीड़ में हर पल बिखरते जा रहे टूटते ,और, छटपटाते रिश्तों की सच्चाई को प्रमुखता से स्वर दिया है। क्रमानुसार जिसकी बानगी इस प्रकार है-

1 मूल रूप से रूडकी (उत्तर प्रदेश) निवासिनी सुश्री संगीता स्वरूप जी केन्दीय विद्यालय की शिक्षिका रह चुकी हैं तथा वर्तमान में देश की राजधानी में निवासित हैं उनका एक काव्य संग्रह ‘उजला आसमां’ पूर्व में प्रकाशित हो चुका है। उन्होंने उस तथागत महात्मा बु़द्ध से कुछ सवाल पूछे हैं जो अपनी पत्नी और पुत्र को बेसहारा छोडकर चले गये थे । उनके सवाल किसी भी संवेदनशील प्राणी को निरूत्तर करने के लिये ही लिखे गये जान पडते हैं-

.................तथागत सिद्धार्थ -
कौन से ज्ञान की खोज में
किया था तुमने पलायन जीवन से ?
सुना है तुम नहीं देख पाए
रोगी काया को
या फिर वृद्ध होते शरीर को
और मृत्यु ने तो
हिला ही दिया था तुमको भीतर तक
थे इतने संवेदनशील
तो कहाँ लुप्त हो गयी थीं
तुम्हारी संवेदनाऐं
जब पुत्र और पत्नी को
छोड गये थे सोता हुआ
और अपने कर्तव्य से बिमुख हो
चल पडे थे
दर-बदर भटकने..........

2-मूल रूप से इन्दौर में जन्मी और राजस्थान के कोटा जनपद में विवाहित दर्शन कौर वर्तमान में मायानगरी मुंबई में निवास कर रही हैं जिनकी रचनाओं में महानगरी में खो गया मानवीय रिश्ता इस प्रकार दिखा

........नाहक, तुम्हें बाँधने की कोशिश
छलावे के पीछे भागने वाले औंधे मुंह गिरते हैं
इस तपती हुयी मरू भूमि में
चमकती सी बालू का राशि
जैसे कोई प्यासा हिरन,
पानी के लिये
कुलांचे भरता जाता है
अंत में थककर दम तोड देता है
तुम्हारे लिये
इस मरूभूमि में मै भी भटक रही हूँ
काश कि तुम मिल जाते।...............

3-विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी वरिष्ठ हिन्दी कवियत्री सुश्री वन्दना गुप्ता जी की रचना का एक अंश देखें-.

...........न जाने कब
कैसे, कहाँ से
एक काला साया
गहराया
और मुझे
मेरी स्वतंत्रता को
मेरे वजूद को
पिंजरबद्ध कर गया
चलो स्वतंत्रता पर
पहरे लगे होते
मगर मेरी चाहतो
मेरी सोच
मेरी आत्मा को तो
लहूलुहान ना
किया होता
उस पर तो
ना वार किया होता
आज ना मैं
उड़ पाती हूँ
ना सोच पाती हूँ
हर जगह
सोने की सलाखों में
जंजीरों से जकड़ी
मेरी भावनाएं हैं
मेरी आकांक्षांऐं है
हाँ , मैं वो
सोन चिरैया हूँ
जो सोने के पिंजरे
में रहती हूँ
मगर बंधन मुक्त
ना हो पाती हूँ..
......................

4-राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती महेश्वरी कानेरी जी सेवानिवृति के उपरांत देहरादून उत्तराखंड में निवास कर रही हैं। उनकी एक रचना का अंश देखें -

जीवन तो जीया है मैने
लेकिन कब वो अपना था?
रिश्तों के टुकडों में,
सब कुछ बँटा- बँटा था।
कभी रीति और रिवाजों
की ओढी थी चुनरी....
कभी परंपराओं का
पहना था जामा.....
आँखों में स्वप्न नहीं
समर्पण रहता , हर दम
रिश्तों का फर्ज निभाते
जीवन कब बीत गया
दायित्व के बोझ तले
बरबस मन, ये कहता
कौन हूँ मैं ? कौन हूँ मैं?.
.....................

5-सुधीनामा नामक ब्लाग की संचालिका वरिष्ठ ब्लागर सुश्री साधना वैद जी की एक रचना का अंश देखें -

........तुम्हारे घर के सामने के दरख्त की
सबसे ऊँची शाख पर
अपने मन में सालों से घुटती एक
लंबी सी सुबकी को
मैं चुपके से टाँग आयी थी
इस उम्मीद के कि कभी
पतझड के मौसम में
तेज हवा के साथ
उस दरख्त के पत्ते उडकर
तुम्हारे आंगन में आकर गिरे तो
उसके साथ वह सुबकी भी
तुम्हारी झोली में जा गिरे!...........


6-कानपुर निवासिनी सुश्री सुषमा ‘आहुति’ जी की एक रचना की बानगी देखिये
..........एक सवाल मेरा मुझसे ही रहता है,
क्यूं हर रिश्ता दर्द देता है?
हर खुशी के साथ क्यूं गम होता है?
होठों पर मुस्कान रहती है दिल उदास रहता है
चलते हैं तलाश में मंजिल की हम,
पर राहें मुझसे ही सवाल करती हैं।............

इस काव्य-संग्रह में सम्मिलित प्रमुख व्लागर सर्वश्री रूप चंद्र जी शास्त्री ‘मयंक’ आदि कुछ रचनाकारों के नाम हिन्दी कविता की प्रतिष्ठित वेवसाइट । कविताकोश में भी उपलब्ध हैं अतः उनके पन्ने पर इस काव्य-संग्रह का लिंक ... भी कविताकोश में जोड दिया गया है जिसे पढने के लिये इस लिंक पर क्लिक करते हुये पहुंचा जा सकता है ।

इस कविता-संग्रह को । हिन्दी विकीपीडिया पर उपलब्ध हिन्दी पुस्तकों की सूची में भी जोडा गया है जो अभी अपने प्रारंभिक स्वरूप में है ...


यदि आप चाहें तो स्वयं भी इसमें पठनीय सामग्रियों को जोड कर इसे और अधिक विकसित कर सकते हैं।


प्रकाशित काव्य संग्रह को आशीर्वाद देते पूज्यनीय पिता जी

आप को भारतीय नारी परिवार की ओर से नव वर्ष ''२०१२'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।
  
                     

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

नव वर्ष ...डा श्याम गुप्त की कविता....




पहली जनवरी को मित्र हाथ मिलाके बोले ,
वेरी वेरी हेप्पी हो  न्यू ईअर, हेमित्रवर |
हम बोले शीत की इस बेदर्द ऋतु में मित्र ,
कैसा नव वर्ष तन काँपे थर थर थर |
ठिठुरें खेत बाग़ दिखे कोहरे में कुछ नहीं ,
हाथ पैर हो रहे  छुहारा से  सिकुड़ कर |
सब तो नादान हैं पर आप क्यों हैं भूल रहे,
अंगरेजी लीक पीट रहे नच नच कर ||




अपना तो नव वर्ष चैत्र में होता प्रारम्भ ,
खेत बाग़ वन जब हरियाली छाती है |
सरसों चना गेहूं सुगंध फैले चहुँ ओर ,
हरी पीली साड़ी ओड़े भूमि इठलाती है |
घर घर उमंग में झूमें जन जन मित्र ,
नव अन्न की फसल कट कर आती है |
वही है हमारा प्यारा भारतीय नव वर्ष ,

ऋतु भी सुहानी तन मन हुलसाती है ||


सकपकाए मित्र फिर औचक ही यूं बोले ,
भाई आज कल सभी इसी को मनाते हैं |
आप भला छानते क्यों अपनी अलग भंग,
अच्छे खासे क्रम में भी टांग यूं अडाते हैं |
हम बोले आपने जो बोम्बे कराया मुम्बई,
और बंगलूरू , बेंगलोर को बुलाते हैं |
कैसा अपराध किया हिन्दी नव वर्ष ने ही ,
आप कभी इसको नज़र में न लाते हैं |

नूतन वर्ष २०१२ की हार्दिक शुभकामनाये !


                       Happy New Year
New Year 2012 WallpapersHappy New Year
''भारतीय नारी '' ब्लॉग  के  सभी  सम्मानित  योगदानकर्ताओं  व्  पाठकों  को  नूतन  वर्ष २०१२  की  हार्दिक  शुभकामनाये  ! 
Happy New YearHappy New Year
              ''शुभ  हो  आगमन  
                 अति  शुभ  हो  आगमन  
              खिलखिलाकर  पुष्प  कहते  हैं  
             सुनो  श्रीमन  !
              शुभ  हो  आगमन  ;
               अति  शुभ  हो  आगमन  ''


                                          शिखा कौशिक 
                                    

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

वर्ष 2011-सबसे सशक्त महिला ''बंगाल की शेरनी ''


वर्ष 2011-सबसे सशक्त महिला ''बंगाल की शेरनी ''


मेरी राय  में- इस  वर्ष  20  मई   को  जब  एक  महिला  ने मुख्यमंत्री  पद की शपथ ली  तब  ऐसा  लगा  जैसे  उसने  एक  विशाल व् वर्षों पुरानें  गढ़   को  ढहाकर  अपनी सत्ता की नींव  रख दी हो .आजादी से  अब तक भारत में  13  महिलाएं   मुख्यमंत्री  पद की शपथ ले  चुकी  हैं  पर  जब ''बंगाल  की शेरनी '' कही  जाने वाली '' सुश्री  ममता  बैनर्जी '' ने पश्चिम बंगाल में ३४ वर्षों से सत्तारूढ़ वाममोर्चे  की सरकार को उखाड़ फेंका तब भारत की १४ वी महिला मुख्यमंत्री के  साथ साथ वे पश्चिम बंगाल की'' प्रथम  महिला मुख्यमंत्री'' भी  बन गयी .
                                केंद्र में रेल मंत्री पद  पर अपनी अमूल्य  सेवाएं देने वाली ममता दी में नेतृत्व क्षमता  कूट -कूट  कर भरी है  .निडर   व् संघर्षशील  ममता दी में एक जूनून है गरीब जनता   को उसका हक     दिलवाने का .एक बार भरी सभा में फांसी पर झूल  जाने  की कोशिश  कर अपने जूनून की परिकाष्ठा  प्रदर्शित करने वाली  ममता दी आज  भी  अनेक  जटिल मुद्दों को लेकर  केंद्र सरकार पर अपना दबाव  बनाने से नहीं चूकती हैं-पेट्रोल की बढ़ी कीमतें हो या खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश का मुद्दा अथवा लोकपाल विधेयक  .
                                   ईश्वर  उन्हें पग-पग पर शक्ति  व् सफलता  प्रदान करें ताकि वे ऐसे ही  जन -हित  में अपना योगदान देती  रहें  . 
                                     शिखा कौशिक 
                       [विचारों का चबूतरा ]

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

पुरुषत्व,स्त्रीत्व ... प्राकृतिक-संतुलन तथा आज की स्थिति ...डा श्याम गुप्त...



           
        सृष्टि का ज्ञात कारण है ईषत-इच्छा…..’एकोहं बहुस्याम”….. यही जीवन का उद्देश्य भी है । जीवन के लिये युगल-रूप की आवश्यकता होती है । अकेला तो ब्रह्म भी रमण नहीं कर सका….”स: एकाकी, नैव रेमे । स द्वितीयमैच्छत ।“  तत्व दर्शन में ..ब्रह्म-माया, पुरुष-प्रकृति …वैदिक साहित्य में ..योषा-वृषा …संसार में……नर-नारी…।  ब्रह्म स्वयं माया को उत्पन्न करता है…अर्थात माया स्वयं ब्रह्म में अवस्थित है……जो रूप-सृष्टि का सृजन करती है, अत: जीव-शरीर में-- माया-ब्रह्म अर्थात पुरुष व स्त्री दोनों भाव होते हैं।  शरीर - माया, प्रकृति अर्थात स्त्री-भाव होता है । अत: प्रत्येक शरीर में स्त्री-भाव व पुरुष-भाव अभिन्न हैं। आधुनिक विग्यान भी मानता है कि जीव में ( अर्थात स्त्री-पुरुष दोनों में ही) दोनों तत्व-भाव होते हैं। गुणाधिकता (सेक्स हार्मोन्स या माया-ब्रह्म भाव की)  के कारण….स्त्री, स्त्री बनती है…पुरुष, पुरुष ।
        तत्वज्ञान एवं परमाणु-विज्ञान के अनुसार इलेक्ट्रोन- ऋणात्मक-भाव है …स्त्री रूप है । उसमें गति है, ग्रहण-भाव है।  प्रोटोन..पुरुष है….अपने केन्द्र में स्थित, स्थिर, सबसे अनजान, अज्ञानी-भाव रूप, अपने अहं में युक्त, आक्रामक, अशान्त …धनात्मक भावस्त्री- पुरुष के चारों ओर घूमती हुई उसे खींचती है,यद्यपि खिंचती हुई लगती है, खिंचती भी है,आकर्षित करती है,आकर्षित होती हुई प्रतीत भी होती है| इसप्रकार वह पुरुष की आक्रामकता, अशान्ति को शमित करती है, धनात्मकता को….नयूट्रल, सहज़, शान्ति भाव करती है….यह परमाणु का, प्रकृति का सहज़ सन्तुलन है।
          वेदों व गीता के अनुसार शुद्ध-ब्रह्म  या पुरुष अकर्मा है, मायालिप्त जीव रूप में पुरुष कर्म करता है | माया व प्रकृति की भांति ही स्त्री- स्वयं कार्य नहीं करती अपितु पुरुष को अपनी ओर खींचकर, सहज़ व शान्त करके कार्य कराती है परन्तु स्वय़ं कार्य करती हुई भाषती है, प्रतीत होती है। नारी –पुरुष के चारों ओर घूमते हुए भी कभी स्वयं आगे बढकर पहल नहीं करती, पुरुष की ओर खिंचने का अभिनय करते हुए उसे अपनी ओर खींचती है। वह सहनशीला है। पुरुष आक्रामक है, उसी का शमन स्त्री करती है, जीवन के लिये, उसे पुरुषार्थ प्राप्ति हेतु, मोक्ष हेतु । 
        भारतीय दर्शन के अनुसार जीवन के चार पुरुषार्थ हैं - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष….  स्त्री –धर्म (गुणात्मकता) व काम (ऋणात्मकता) रूप है, पुरुष….अर्थ (धनात्मकता) व काम (ऋणात्मकता ) रूप है….स्त्री-- पुरुष की धनात्मकता को सहज़-भाव करके मुक्ति की प्राप्ति कराती है। यह स्त्री का स्त्रीत्व है। कबीर गाते हैं….“हरि मोरे पीउ मैं हरि की बहुरिया…”…अर्थात मूल-ब्रह्म पुरुष-रूप है अकर्मा, परन्तु जीव रूप में ब्रह्म ( मैं ) मूलत:…स्त्री-भाव है ताकि संतुलन रहे। अत:  यदि पुरुष अर्थात नर…भी यदि स्वयं नारी की ओर खिंचकर स्त्रीत्व-भाव धारण करे, ग्रहण करे तो उसके अहम, धनात्मकता, आक्रामकता का शमन सरल हो तथा जीवन, पुरुषार्थ व मोक्ष-प्राप्ति सहज़ होजाय ।
    
        प्रश्न यह उठता है कि यदि नारी स्वयं ही पुरुष-भाव ग्रहण करने लगे, अपनाने लगे तो ? यही आज होरहा हैपुरुष तो जो युगों पहले था वही अब भी है । ब्रह्म नहीं बदलता, वह अकर्मा है, अकेला कुछ नहीं है। ब्रह्म का मायायुक्त रूप, पुरुष जीवरूप तो  नारीरूपी पूर्ण स्त्रीत्व-भाव  से ही बदलता है, धनात्मकता, पुरुषत्व शमित होता है, उसका अह्म-क्षीण होता है, शान्त-शीतल होता है, क्योंकि उसमें भी स्त्रीत्व-भाव सम्मिलित है। परन्तु स्त्री आज अपने स्त्रीत्व को छोडकर पुरुषत्व की ओर बढ रही है।  आचार्य रज़नीश (ओशो)- का कथन है कि- ’यदि स्त्री, पुरुष जैसा होने की चेष्टा करेगी तो जगत में जो भी मूल्यवान तत्व है वह खोजायगा ।
        हम बडे प्रसन्न हो रहे हैं कि लडकियां, लडकों की भांति आगे बढ रही है। माता-पिता बडे गर्व से कह रहे हैं कि हम लडके–लडकियों में कोई भेद नही करते खाने, पहनने, घूमने, शिक्षा सभी मैं बराबरी कर रही हैं, जो क्षेत्र अब तक लडकों के, पुरुषों के माने जाते थे उनमें लडकियां नाम कमा रही है। परन्तु क्या लडकियां स्त्री-सुलभ कार्य, आचरण-व्यवहार कर रही हैं?  मूल भेद तो है ही...सृष्टि महाकाव्य में कहा गया है ....
                     ' भेद बना है, बना रहेगा,
                      भेद-भाव व्यवहार नहीं हो | '
           क्या आज की शिक्षा उन्हें नारीत्व की शिक्षा दे रही है? आज सारी शिक्षा-व्यवस्था तथा समाज भी भौतिकता के अज्ञान में फ़ंसकर लडकियों को लड़का बनने दे रहा है। यदि स्त्री स्वयं ही पुरुषत्व व पुरुष-भाव की  आक्रमकता, अहं-भाव, धनात्मक्ता ग्रहण करलेगी तो उसका सहज़ ऋणात्मक-भाव, उसका कृतित्व, उसका आकर्षण समाप्त हो जायगा। वह पुरुष की अह्मन्यता, धनात्मकता को कैसे शमन करेगी? पुरुष-पुरुष अहं का टकराव विसन्गतियों को जन्म देगा। नारी के स्त्रीत्व की हानि से उसके आकर्षणहीन होने से वह सिर्फ़ भोग-उपभोग की बस्तु बनकर रह् जायगी ।  पुरुषों के साथ-साथ चलना, उनके कन्धे से कन्धा मिला कर चलना एक पृथक बात है आवश्यक भी है परन्तु लडकों जैसा बनना, व्यवहार, जीवनचर्या एक पृथक बात।  आज नारी को आवश्यकता शिक्षा की है, साक्षरता की है, उचित ज्ञान की है। आवश्यकता स्त्री-पुरुष समता की है, समानता की नहीं, स्त्रियोचित ज्ञान, व्यवहार जीवनचर्या त्यागकर पुरुषोचित कर्म व व्यवहार की नहीं…..।

                                     .... चित्र -गूगल ..साभार 

साक्षात् देवी -एक लघु कथा


साक्षात् देवी -एक लघु कथा 
jai mata dijai mata di


शुचि  का  मूड  सुबह  से  ही  ख़राब  था  .उसके यहाँ बर्तन साफ करने वाली जमुना मौसी की बेटी का विवाह बीस हजार रूपये का इंतजाम न होने के कारण आगे टलने के कगार पर था और शुचि के पतिदेव विपुल ने उन्हें बीस हजार रूपये उधार  देने से इंकार कर दिया था .शुचि जानती  थी की आज  कल  विपुल को  व्यापार  में घाटा  झेलना  पड़  रहा  है  वरना  वो  भी  किसी की मदद करने में पीछे नहीं हटता .ऐसी ही ख़राब मूड में वो घर के कम में लग गयी थी और विपुल अपने कार्य स्थल को रवाना हो गया .दिन में दो बजे अचानक विपुल को घर लौटा देख शुचि उसके स्वास्थ्य को लेकर सशंकित हो उठी पर विपुल के चेहरे पर आई चमक देखकर वह भी खिल उठी .विपुल चहकता हुआ बोला-''....शुचि जल्दी से तैयार हो जाओ ..हम अभी जमुना मौसी के घर चलेंगे .....उनकी बिटिया का विवाह अब नहीं टलेगा .....याद है मैंने आने वाले नवरात्रों में देवी मैया  को जोड़ा व् कंगन चढाने  की प्रतिज्ञा की थी पर अब जब असली कन्या देवी रूप में हमारी भेंट  स्वीकार  कर रही रही तब मैं साक्षात् देवी की उपेक्षा का पाप अपने सिर  पर ले सकता हूँ ?....शुचि का ह्रदय  आनन्द  से भर उठा और नेत्र श्रृद्धा जल से नम हो गए .वो हाथ जोड़कर देवी मैय्या को नमस्कार करती हुई बोली-''विपुल देवी मैय्या ने ही आपको यह अच्छी सोच प्रदान की है .देखना आज जमुना मौसी के रूप में माता हमारी झोली आशीषो से भर देगी !''

                                                 शिखा कौशिक 
                               [मेरी कहानियां ]
                     

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

ये औरत ही है !


ये औरत ही है !



पाल कर कोख में जो जन्म देकर बनती  है जननी 
औलाद की खातिर मौत से भी खेल जाती है .


बना न ले कहीं अपना वजूद औरत 
कायदों की कस दी  नकेल जाती है .


मजबूत दरख्त बनने नहीं देते  
इसीलिए कोमल सी एक बेल बन रह जाती है .


हक़ की  आवाज जब भी  बुलंद करती है 
नरक की आग में धकेल दी जाती है 





फिर भी सितम  सहकर  वो   मुस्कुराती  है 
ये औरत ही है जो हर  ज़लालत  झेल  जाती  है .


                                          शिखा कौशिक 
                           [vikhyaat  ]













सोमवार, 26 दिसंबर 2011

चाहा था उन्हें



कसूर इतना था कि चाहा था उन्हें 
दिल में बसाया था उन्हें कि 
मुश्किल में साथ निभायेगें 
ऐसा साथी माना था उन्हें |
राहों में मेरे साथ चले जो
दुनिया से जुदा जाना था उन्हें
बिताती हर लम्हा उनके साथ
यूँ करीब पाना चाहा था उन्हें
किस तरह इन आँखों ने
दिल कि सुन सदा के लिए
उस खुदा से माँगा था उन्हें
इसी तरह मैंने खामोश रह
अपना बनाना चाहा था उन्हें |
- दीप्ति शर्मा

रविवार, 25 दिसंबर 2011

मैं क्यों अग्नि-परीक्षा देती रहूँ ?


मैं  क्यों अग्नि-परीक्षा देती रहूँ ?
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नवभारत टाइम्स  की  वेबसाईट  पर  ये   खबर  पढ़ी  - 
''इस सप्ताह प्रीति जिंटा की बारी है अपने सबसे बड़े हेटर (नफरत करने वाले) चिराग महाबल से टकराने की। चिराग महाबल ने जिंटा की यह कहते हुए आलोचना की कि वह आईपीएल में इसलिए शामिल हुईं क्योंकि उनका फिल्मी करियर ठीक नहीं चल रहा था। महाबल के मुताबिक बॉलिवुड हस्तियों के शामिल होने की वजह से शो बिज आईपीएल से हट गया। 
अपने बचाव में प्रीति जिंटा ने कहा, मैंने क्रिकेट की दीवानगी सीखी यहां। पहले मैं क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जानती थी। आईपीएल क्रिकेट सबसे बड़ी मंदी से ठीक पहले लॉन्च हुआ। यह मेरा खून-पसीने से कमाया हुआ पैसा था जो मैंने आईपीएल में डाला। मैंने कोई घपला नहीं किया, मैं किसी के साथ नहीं सोई। 
''इस खबर की यह पंक्ति वास्तव में स्त्री होने का खामियाजा  भुगतना  ही प्रतीत  होती  है कि -''मैं किसी  के साथ नहीं  सोयी ''
                  त्रेता युग से हर स्त्री अपनी  शुद्धता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए ऐसी ही अग्नि परीक्षाओं से गुजर रही है पर पुरुष प्रधान समाज  के पास तो स्त्री को अपमानित  करने का बस यही ब्रह्मास्त्र है कि -''देखो यह स्त्री दुश्चरित्र है ....कलंकनी  है .....मर्यादाहीन  है  .''
                           ऐसे में स्त्री को भी अब पुरुष समाज को चुनौती देते हुए कहना चाहिए कि -आप प्रमाणित कीजिये मैं किसके साथ सोयी ?मैं क्यों अग्नि-परीक्षा देती रहूँ ?
                                                     शिखा कौशिक 
                                  [विचारों का चबूतरा ]

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

महिलाए ही नसबंदी क्यो कराये ,पुरूष क्यों नहीं

             टीक  टीक चलती जनसंख्या की घडी हमें रोज इस बात के लिए आगाह करती है कि बेतहाषा बढती जनसंख्या विस्फोटक की गति को रोक लगाने के लिए राष्ट्ीय परिवार कल्याण कार्यक्रम द्धारा जगह-जगह नियमित नसबंदी षिविर लगाये जाते है।पुरूष और महिला नसबंदी ही एक मात्र परिवार नियोजन का स्थाई समाधान है।

हमारे देष में छोटे परिवार की अवधारणा पर जोर लगाना होगा।  ग्रामीण और अनपढ महिलाये नौ महिनों की गर्भावस्था और प्रसव वेदना के बाद षिषु पालन का बोझ जिन्दगी भर उठाती रहती है।अधिकाष करीबन 99प्रतिषत मामलों में महिलाऐ ही नसबंदी ;ट्यूवेक्टामीद्ध  कराती है,पुरूष  नसबंदी ;वेसेक्टोमीद्ध करीब करीब कम ही देखी जाती है।

अस्पताल में डिलेवरी के बाद चिकित्सक मरिज की रजाबंददी से नसबंदी करते है,जो एक अच्छी बात है, जबकि पुरूष कभी भी नसबंदी के लिए राजी नही होते है,वे महिलाओं को आगे धकेल देते है कि बच्चा पैदा करना पत्नि का काम है अतः बच्चे पैदा करने वाली फैक्ट्ी पर नसबंदी रूपी ताला लगा दिया जाना ही परिवार नियोजन है और यह काम पत्नि का है।

      जहां एक और महिलाओं के षरीर की रचना जटिल होती है।अधिकाष महिलाए जनन मू़त्र संस्थान के संक्रमण, ल्युकोरिया, एनिमिया और आॅस्टियोपोरोसिस से ग्रसित होती है।ऐसी स्थिति में उनको उनका बच्चा जनने का दायित्व बताकर नसबंदी कराइ्र्र जाती है।पुरूष प्रधान समाज में महिलाए आम तौर पर चुुपचाप यह स्वीकार कर आॅपरेषन करा लेती है क्योंकि नसबंदी न कराने पर गर्भवती होने का व प्रसव पीडा पुनः भोगने का डर उसे हमेषा बना रहता है।महिला न कराती है तो उसे गृह कलह का भी सामना करना पडता है। ऐसी विडम्बना में नारी के पास एक ही उपाय है कि वह सर्मपण कर दे और अपनी नसबंदी करा दे।

      जबकि इसके विपरित पुरूष अपनी नसबंदी नही करवाकर अपनी स्वेच्छा से सभी आनन्द लेना चाहता,उसको यह मिथ्या गुमान रहता है कि बच्चे पैदा करने का काम महिलाओं का ही है जब की वह पूर्ण रूप से बीजारोपण का जिम्मेदार  वह स्वयं है, अतः दोनो की समान भागीदारी आन पडती है ऐसे में इस तरह के कुठित विचारो से समाज मे इस कार्यक्रम के प्रति अलग ही नजरिया बन गया है ।कई पुरूष यह सोचते है कि नसबंदी कराने से उनकी मर्दानगी चली जायेगी और यौन क्षमता क्षीण हो जायेगी, जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से पुरूष नसबंदी कुछ ही मिनटो का आउटडोर प्रोसिजर है।आजकल बीना टीका लगाये पुरूष नसबंदी होने का प्रचलन बन गया है। जो कोई भी पुरूष चलते फिरते कभी भी करा सकता है। इसे चिकित्सक लंच ब्रेक आपरेषन भी कहते है।


   परिवार की खुषहाली  के लिए पति-पत्नि दोनों का समान अधिकार है तथा वे दोनो ही संयुक्त रूप से जिम्मेदार है।पुरूष नसबंदी बहुत ही सरल,सुलभ और व्यवहारिक आॅपरेषन है,ऐसे में महिलाओं को आगे नसबंदी कराने धकेल देना कहा तक न्याय संगत है।


                                   प्रषेकः-
    श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
  महादेव कालोनी
 बासवाडा;राज
 

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

वह...कविता ...डा श्याम गुप्त ....

वह नव विकसित कलिका बनकर ,     
सौरभकण  वन-वन बिखराती ।
दे मौन - निमंत्रण भंवरों  को,
वह  इठलाती,  वह  मदमाती  ॥

वह शमा बनी झिलमिल-झिलमिल ,
झंकृत करती तन - मन को |
गौरवमय दिव्य विलासमयी,
कम्पित करती निज तन को ||

अथवा तितली बन, पंखों को -
झिलमिल झपकाती चपला सी|
इठलाती, सबके मन को थी ,
बारी - बारी  से बहलाती ||

या बन बहार निर्जन वन को,
हरियाली से  नहलाती है |
चन्दा की उजियाली बनकर,
सबके मन को हरषाती है ||

वह घटा बनी जब सावन की,
रिमझिम-रिमझिम बरसात हुई|
मन के कोने को भिगो गयी,
दिल में उठकर ज़ज्बात हुई ||

वह क्रान्ति बनी गरमाती है,
वह भ्रान्ति बनी भरमाती है |
सविता की किरणें बनकर वह,
धरती पर रस बरसाती है ||

कवि की कविता बन, अंतस में-
कल्पना - रूप  में लहराई |
बन गयी कूक जब कोयल की,
जीवन की बगिया महकाई ||

जब प्यार बनी तो दुनिया को,
कैसे जीयें -यह सिखलाया |
नारी बनकर कोमलता का,
सौरभ-घट उसने छलकाया ||

वह भक्ति बनी, मानवता को-
दैवीय - भाव है सिखलाया |
वह शक्ति बनी जब माँ बनकर,
मानव तब पृथ्वी पर आया ||

वह ऊर्जा बनी, मशीनों की,
विज्ञान - ज्ञान धन कहलाई |
वह आत्मशक्ति, मानव मन में,
संकल्प-शक्ति बन कर छाई ||

वह लक्ष्मी है,  वह सरस्वती ,
वह माँ काली,  वह पार्वती |
वह महाशक्ति है अणुकण की,
वह स्वयं शक्ति है कण-कण की ||

है गीत वही,  संगीत वही,
योगी का अनहद-नाद वही |
बन कर वीणा की तान वही,
मन-वीणा को हरषाती है ||

वह आदिशक्ति वह माँ प्रकृति
नित  नए रूप रख आती  है  |
उस परमतत्व की इच्छा बन ,
यह सारा साज सजाती है ||

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

Think


काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान" को माँ का आशीर्वाद .....


प्रकाशित काव्य संग्रह को आशीर्वाद देती पूज्यनीया माँजी
उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान" में प्रकाशित मेरी कविताओं की समीक्षा श्रेष्ठ कवियत्री वंदना गुप्ता जी के द्वारा ..........
..........उत्तर प्रदेश में रहने वाले प्रशासनिक अधिकारी श्री अशोक कुमार शुक्ला जी की कवितायेँ यथार्थ बोध कराती हैं ."इक्कीसवां बसंत" कविता में कवि ने बताया कि कैसे युवावस्था में मानव स्वप्नों के महल खड़े करता है और जैसे ही यथार्थ के कठोर धरातल पर कदम रखता है तब पता चलता है कि वास्तव में जीवन खालिस स्वप्न नहीं . "कैसा घर" कविता व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष है .तो दूसरी तरफ "गुमशुदा" कविता में रिश्तों की गर्माहट ढूँढ रहे हैं जो आज कंक्रीट के जंगलों में किसी नींव में दब कर रह गयी है .इनके अलावा "तुम", "दूरियां", "परिक्रमा" ,"बिल्लियाँ" आदि कवितायेँ हर दृश्य को शब्द देती प्रतीत होती हैं यहाँ तक कि बिल्लियों के माध्यम से नारी के अस्तित्व पर कैसा शिकंजा कसा जाता है उसे बहुत ही संवेदनशील तरीके से दर्शाया है........
"चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर

और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ

मैं कि आखिर इस पिंजरे के अन्दर

कितना उडा जा सकता है

आखिर क्यों नहीं सहा जाता

अपने पिंजरे में रहकर भी

खुश रहने वाली

चिड़ियों का चहचहाना"


तो दूसरी तरफ "वेताल" सरीखी कविता हर जीवन का अटल सत्य है. हर कविता के माध्यम से कुछ ना कुछ कहने का प्रयास किया है जो उनके लेखन और सोच की उत्कृष्टता को दर्शाता है .

श्रीमती वन्दना गुप्ता जी

आपका आभार कि आपने संपूर्ण कविता संग्रह के संदर्भ में मेरी कविताओं को गहनता से पढकर सार्थक समीक्षा प्रस्तुत की। "इक्कीसवां बसंत" कविता की पृष्ठभूमि के लिए इसी ब्लॉग पर लिंक है पूर्णतः सच्ची घटना से प्ररित कुछ पंक्तियाँ ...


और यह रही "बिल्लियाँ" नामक पूरी कविता----


बिल्लियॉ


खूबसूरत पंखों वाली नन्हीं चिडियों को

एक पिंजरें में कैद कर लिया था हमने ,

क्योंकि उनके सजीले पंख लुभाते थे हमको,

इस पिंजरे में हर रोज दिये जाते थे

वह सभी संसाधन

जो हमारी नजर में

जीवन के लिये जरूरी हैं,

लेकिन कल रात बिल्ली के झपटटे ने

नोच दिये हैं चिडियों के पंख

सहमी और गुमसुम हैं

आज सारी चिडिया

और दुबककर बैठी हैं पिजरें के कोने में
,
पहले कई बार उडान के लिये मचलते

"चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर

और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ

मैं कि आखिर इस पिंजरे के अन्दर

कितना उडा जा सकता है

आखिर क्यों नहीं सहा जाता

अपने पिंजरे में रहकर भी

खुश रहने वाली

चिड़ियों का चहचहाना"


इस कविता की पृष्ठभूमि की चर्चा फिर कभी इसी ब्लॉग पर करूंगा
वन्दना जी पुनः आभार
अगर आप में से कोई भी इस काव्य संग्रह को पढना चाहता है तो उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह "टूटते सितारों की उड़ान" प्राप्त करने के लिए लेखक से अथवा सत्यं शिवम् जी से इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं ..........9934405997 इस मेल पर संपर्क किया जा सकता है.contact@sahityapremisangh.com

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

स्त्री को एक शो-पीस बना कर प्रस्तुत करने वाले लोगों को कड़ा दंड मिलना ही चाहिए


एक खबर पढ़ी -
Shahrukh-Khan.jpg
''कोच्चि।। बॉलिवुड स्टार शाहरुख खान के खिलाफ महिलाओं के अश्लील चित्रण (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के उल्लंघन का मामला दर्ज किया गया है। एक शोरुम के उद्घाटन के सिलसिले में चार दिसंबर को शाहरुख ने यहां अपनी हालिया फिल्म 'रा. वन' के चर्चित गाने 'छम्मक छल्लो' पर कुछ कलाकारों के साथ डांस किया था, जिसमें उनके साथ डांस करने वाली लड़कियां बहुत कम कपड़ों में थीं।''[नवभारत टाइम्स से साभार ]


                  शाहरुख़ खान पर मामला दर्ज किया जाना उचित ही है क्योंकि ये सितारे फिल्मों में तो भारतीय संस्कृति का गुणगान करते दिखलाई देते हैं पर निजी जीवन में मर्यादाओं की धज्जियाँ व्यवसायिक हितों हेतु उड़ा देते हैं .हैरानी की बात ये है कि ये कार्यक्रम एक कपडा कम्पनी ने आयोजित किया था .कपडा कम्पनी को भी आरोपी बनाया गया है .इतनी शोहरत -दौलत कमा लेने के बाद भी शाहरुख़  जैसे सितारे क्यों नहीं ऐसे  मर्यादाहीन प्रदर्शन के लिए इंकार  करते ? शाहरुख़ खान स्वयं एक पुत्री के पिता हैं क्या वे अपनी पुत्री को  ऐसी  ही पोशाक में नचाना पसंद करेंगे ?यदि नहीं तो  अन्य लड़कियों का ऐसा शोषण क्यों करते हैं ये ?शाहरुख़ के साथ-साथ वे लड़कियां भी जिम्मेदार हैं जो ऐसे वस्त्रो को धारण  करने के लिए तैयार हो जाती हैं .ऐसे अमर्यादित प्रदर्शन को देखने वाले भी जिम्मेदार हैं .पश्चिमी संस्कृति के सकारात्मक पक्षों को ग्रहण करना अलग बात है पर नग्नता को हमारे समाज में स्वीकृति   दी  जाये  ऐसा संभव  नहीं है .सिर से पांव तक ढकी  स्त्री  तो अस्मिता की रक्षा कर नहीं पा रही ऐसे में अर्ध नग्न कर स्त्री देह का प्रयोग व्यवसायिक हितों के लिए करना क्रूरतापूर्ण अपराध है . स्त्री को एक शो-पीस बना कर प्रस्तुत करने वाले लोगों को कड़ा दंड मिलना ही चाहिए   .
                                              शिखा कौशिक 
                                 [विचारों का चबूतरा ]

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

अवैध यौन संबंधों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था

अवैध यौन संबंधों में कानून द्वारा लिंग भेद - एक परिचर्चा ! 

-डा. टी. एस. दराल जी 

धार्मिक पहलू :

सभी धर्मों में इसे पाप माना जाता है । इस्लाम में तो इसके लिए सख्त सज़ा का प्रावधान है ।

अब कुछ सवाल उठते हैं आम आदमी के लिए :

* क्या इस मामले में स्त्री पुरुष में भेद भाव करना चाहिए ?
* यदि पति की रज़ामंदी से उसकी पत्नी से रखे गए सम्बन्ध गैर कानूनी नहीं हैं तो क्या वाइफ स्वेपिंग जायज़ है ?
* क्या इस कानून में बदलाव की ज़रुरत है ?

पति पत्नी के सम्बन्ध आपसी विश्वास पर कायम रहते हैं । कानून भले ही ऐसे मामले में पत्नी को दोषी न मानता हो , लेकिन व्यक्तिगत , पारिवारिक , सामाजिक और नैतिक तौर पर ऐसे में दोनों को बराबर का गुनहगार माना जाना चाहिए ।

हमारा स्वस्थ नैतिक दृष्टिकोण ही हमारे समाज के विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है ।
 

-----------------------

हमने इस पोस्ट पर कहा है कि

आपने कहा है कि
'जहाँ तक मैं समझता हूँ , हिन्दू धर्म में इसे पाप समझा जाता है लेकिन सज़ा के लिए कोई प्रावधान नहीं है ।'
के बारे में

@ डा. टी. एस. दराल जी ! जिस बात को धर्मानुसार पाप कहा जाता है उसके लिए धार्मिक व्यवस्था में दण्ड का विधान भी होता है।
यह बात आपको जाननी चाहिए कि मनु स्मृति में बलात्कार और अवैध यौन संबंधों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था है।

मनु स्मृति में अवैध यौन संबंध के लिए दंड

भर्तारं लंघयेद्या तु स्त्री ज्ञातिगुणदर्पिता ।
तां श्वभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते ।।
-मनु स्मृति, 8, 371
जो स्त्री अपने पैतृक धन और रूप के अहंकार से पर पुरूष सेवन और अपने पति का तिरस्कार करे उसे राजा कुत्तों से नुचवा दे। उस पापी जार पुरूष को भी तप्त लौह शय्या पर लिटाकर ऊपर से लकड़ी रखकर भस्म करा दे।

मनु स्मृति के इसी 8 वें अध्याय में जार कर्म और बलात्कार आदि के लिए दंड का पूरा विवरण मौजूद है।

Source : http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/12/blog-post_5807.html

डॉ.ओम निश्‍चल जी द्वारा स्वर्गीय संध्या जी को विनम्र श्रद्धान्जलि

अशोक  शुक्ला जी  द्वारा  प्रस्तुत  '' तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....ब्लागर डा0 सन्.''.पोस्‍ट संध्‍या के बारे में पढ़ी । मेरे भी उनसे मैत्री और ताल्‍लुकात थे। उन्‍होंने मेरे कहने पर '' बना लिया मैने भी घोंसला '' की पांडुलिपि तेयार की थी और उसे भारतीय ज्ञानपीठ मे प्रकाशन हेतु विचारार्थ भेजा था। इसे पढ़कर मैंने अनूकूल संस्‍तुति की थी और उम्‍मीद थी कि संग्रह ज्ञानपीठ से ही छपेगा। पर किन्‍हीं कारणों से यह संग्रह वहॉं से नहीं आ सका और बाद में यह राधाकृष्‍ण से छपा। मेरी उनसे पटना और दिल्‍ली में रहते हुए बराबर बातचीत होती रहती थी। पटना से जुलाई में वाराणसी में आने के बाद से उनसे संपर्क नहीं रहा और इसी बीच यह हादसा हो गया। पिछले दिनों उनके निधन के समाचार से स्‍तब्‍ध रह गया। वे अपनी मॉं की सेवा में किस तरह जुटी रहती थीं, यह बात वे मुझे बताती थीं। एक बार वे अपनी बेटी और पतिदेव गुप्‍ता जी के साथ दिल्‍ली आई थीं तो मुझसे इलाहाबाद बैंक में मिलने आईं। काफी बातें हुईं। अपना ब्‍लाग बनाया तो भी सूचना दी। उन्‍हें पढ़ता भी रहता था। साहित्‍य और दीगर मसलों पर उनसे बातें भी होती थीं।  उनके न रहने का शून्‍य हमेशा सालता रहेगा। ईश्‍वर दिवंगत आत्‍मा को शांति दे। 


                                                                    डॉ.ओम निश्‍चल

(स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )- अवन्ती सिंह [गीत अंतरात्मा के] द्वारा

  अवन्ती  सिंह [गीत अंतरात्मा के] द्वारा प्रस्तुत टिप्पणी रूप में (स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )


विनम्र श्रद्धांजलि...


 गर प्राण ,देह को असमय त्याग दें तो हे भगवन,
 करना मुझ पे इतनी कृपा एक नव देह देना मुझे को ,
कुछ दिन को सही ,
 सभी अधूरे कार्य कर सकूँ ,
कुछ अभिलाषाए पूर्ण कर सकूँ ...... 
कुछ और देर मुंडेर पर बैठी चिड़ियों के कलरव गीत का रस पान कर सकूँ
 एक और बार सींच सकूँ 
उन पौधों को जो मेरे अकस्मात जाने के बाद सूख चले है
 कुछ और देर बच्चों की निर्दोष हँसीं सुन लूँ समेत लूँ ,
अपने अंतर में ,
उन की सुन्दर छवियाँ कुछ 
और देर आत्मीय जनों को अपनी मुस्कान से सुख शांति प्रदान कर सकूँ
 कुछ और देर बैठ सकूँ प्रीतम के पास, 
कह दूँ वो सब जो कभी कहा ही नहीं, 
प्रकट कर दूँ विशुद्ध प्रेम जिसके सहारे
 वो अपने अकेलेपन से जूझ पाए कर पाए जीवन की हर कठिनाई का सामना ,
बिना थके . बूढी माँ को कह तो सकूँ के दवा टाइम से खाना ,
अब मेरी तरह रोज दवा 
टाइम देने शायद कोई न भी आ पाए प्राणों ने देह ही तो छोड़ी है ,
पर उन अभिलाषाओं को कहाँ छोड़ पाए है जो , 
अभी तक पल रही है इस अमर मन में....
 (स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )

प्रतिभा जी को उनके ७८ वे जन्म-दिवस पर बहुत बहुत शुभकामनायें


President of India : Smt. Pratibha Devisingh Patil
[गूगल से साभार ]

श्रीमती  प्रतिभा  देवीसिंह  पाटिल 
[भारत की  प्रथम  महिला राष्ट्रपति]




आज हमारे भारतीय गणराज्य की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी का जन्म दिवस है . प्रतिभा  जी का जन्म१९ दिसम्बर १९३४ को महाराष्ट्र  के जलगाँव जिले के नदगांव  में हुआ  था .श्रीमती प्रतिभा जी ने भारतीय- गणराज्य के १२  वे राष्ट्रपति के रूप में २५ जुलाई२००७ को  पद ग्रहण किया .वे प्रथम भारतीय महिला हैं जिन्होंने इस पद को सुशोभित किया है .इससे ठीक पहले प्रतिभा जी राजस्थान के राज्यपाल पद को सुशोभित कर रही थी .२७ वर्ष की आयु में अपना राजनैतिक सफ़र तय करने वाली हमारी सम्मानीय प्रतिभा जी ने अनेक महत्वपूर्ण पदों को  सुशोभित किया और अपने  लम्बे सेवा काल में 
महिलाओं  के कल्याण और बच्चों व्  सामाजिक रूप से पिछड़े-वर्गों के उत्थान हेतु अनेक संस्थाओं की स्थापना की .जिनमे कुछ इसप्रकार हैं -


 (i) hostels for working  women in Mumbai and Delhi, 


(ii) an Engineering College at Jalgaon for rural youth, 


(iii) the Shram Sadhana Trust which takes part in multifarious welfare activities for development of women, 


(iv)an Industrial Training School for the visually 


handicapped in Jalgaon, 


(v) schools for poor children of Vimukta Jatis


(Nomadic Tribes) and for children of Backward Classes 


in Amravati District 


(vi) a Krishi Vigyan Kendra  (Farmers’ Training Centre) 


at Amravati, Maharashtra


                      प्रतिभा जी  ने हमेशा  महिलाओं के विकास व्  कल्याण  हेतु  अपना  संघर्ष  जारी रखा है . प्रतिभा जी ने ''महिला विकास महामंडल ''के गठन  में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो महाराष्ट्र राज्य-सरकार का महिलाओं के विकास से सम्बंधित एक विभाग है .प्रतिभा जी ने गरीब व् जरूरतमंद महिलाओं के लिए अमरावती [महाराष्ट्र ]में संगीत,कम्पुयूटर,सिलाई की कक्षाओं को आरम्भ कराया तथा  जलगाँव में महिला होमगार्ड  की संस्थापना  की व् १९६२ में इनकी कमांडेंट रहीं .


                                     पारिवारिक जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभाने वाली प्रतिभा जी ने प्रत्येक भारतीय नारी के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया है कि एक स्त्री यदि चाहे तो पुरुष-प्रधान हमारे समाज में भी वो अपने लक्ष्यों  को प्राप्त कर सकती है .हमें गर्व है कि हमने प्रतिभा जी जैसी उदार ह्रदय व्  महिलाओं के कल्याण में अपना जीवन लगा देनी वाली भारतीय सभ्यता   -संस्कृति में रची-बसी माता-सम श्रेष्ठ -नारी को अपने देश के सर्वोच्च पद पर आसीन किया है . 




                                        प्रतिभा जी को उनके ७८ वे जन्म-दिवस पर बहुत बहुत शुभकामनायें .


                                                                               शिखा कौशिक  
                                                             [विचारों का चबूतरा ]


रविवार, 18 दिसंबर 2011

सब जग तेरी छाया ... डा श्याम गुप्त का पद....

नारी सब जग तेरी छाया  ।
सारे जग का प्रेम औ ममता तेरे मन ही समाया |
तेरी प्रीति की रीति ही तो है जग की छाया माया |
ममता रूपी माँ के पग तल सारा जगत सुहाया |
प्रेम की सुन्दर नीति बनी तो जग में प्यार बसाया |             
भगिनी पुत्री विविधि रूप बन जग संसार रचाया |
आदि-शक्ति सरस्वती औ गौरी लक्ष्मी रूप सजाया |
राधा बन कान्हा को नचाये सारा जगत नचाया |
श्याम' कामिनी सखी प्रिया प्रेयसि बन मन भरमाया ||

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....ब्लागर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी के निधन पर विनम्र श्रद्वांजलि

बीते नवम्बर की आठ तारीख को तरक्की के इस जमाने में एक जंगली बेल ... की मुहिम चलाने वाली सुश्री डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रही । उनके असामयिक निधन की सूचना ब्लाग जगत में विलंब से प्राप्त हुयी । श्री अनुराग शर्मा जी के पिटरबर्ग से एक भारतीय नामक ब्लाग .. पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रहीं।

वे विगत नवम्बर 2010 तक अपने ब्लाग पर सक्रिय रूप से लिखती रहीं फिर अचानक ब्लाग जगम में लगातार अनुपस्थित रही थी । इस अनुपस्थिति की बाबत अचानक अगस्त 2011 में एक दिन अचानक अपने ब्लाग पर‘फिर मिलेंगे’... नामक शीर्षक के छोटे से वक्तब्य के साथ प्रगट हुयी थीं तब उन्होने अवगत कराया था कि वे जीभ के गंभीर संक्रमण से जूझ रही थीं और शीघ्र स्वस्थ होकर लौट आयेंगी ।




सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.संध्या गुप्ता अब इस दुनियां में नहीं रही। पिछले कई माह से बीमार चल रही डॉ.गुप्ता ने गुजरात के गांधी नगर में आठ नवम्बर 2011 को सदा के लिए आंखें मूंद ली हैं। वह अपने पीछे पति सहित एक पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गयी है। पुत्र प्रो.पीयूष यहां एसपी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के व्याख्याता है। उनके आकस्मिक निधन पर विश्वविद्यालय परिवार ने गहरा दुख प्रकट किया है। प्रतिकुलपति डॉ.प्रमोदिनी हांसदा ने 56 वर्षीय डॉ.गुप्ता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि दुमका से बाहर रहने की वजह से आखिरी समय में उनसे कुछ कहा नहीं जा सका इसका उन्हें सदा गम रहेगा। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि हिंदी जगत ने एक अनमोल सितारा खो दिया है।

डॉ.गुप्ता को उनकी काव्यकृति 'बना लिया मैंने भी घोंसला' के लिए मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था।

आज उन्हे श्रद्वांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनके ब्लाग पर नवम्बर 2010 को प्रकाशित उनकी कविता तय तो यह था...

तय तो यह था...


तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल

तय तो यह था कि
पिछवाड़े में इसी साल फलने लगता अमरूद

तय था कि इसी महीने आती
छोटी बहन की चिट्ठी गाँव से
और
इसी बरसात के पहले बन कर
तैयार हो जाता
गाँव की नदी पर पुल

अलीगढ़ के डॉक्टर बचा ही लेते
गाँव के किसुन चाचा की आँख- तय था

तय तो यह भी था कि
एक दिन सारे बच्चे जा सकेंगे स्कूल...

हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं
वे समय के दुःख में शामिल हो एक
अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं

लेकिन-
नहीं था तय ईश्वर और जाति को लेकर
मनुष्य के बीच युद्ध!

ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर
और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों
चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी
नहीं किया था तय!

नवभारत टाइम्स दैनिक ई पत्र पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
तय तो यह था....विनम्र श्रद्वांजलि



और यह रही डा0 सन्ध्या जी की उनके ब्लाग पर दिनांक 18 सितम्बर 2008 को प्रकाशित पहली पोस्ट


बृहस्पतिवार, १८ सितम्बर २००८

कोई नहीं था.....

कोई नहीं था कभी यहां
इस सृष्टि में
सिर्फ
मैं...
तुम....और
कविता थी!
प्रस्तुतकर्ता sandhyagupta पर ८:३२:०० पूर्वाह्न

कोलाहल से दूर ब्लाग पर श्रद्धांजलि के लिये क्लिक करें
सचमुच
तय तो यह था कि
आदमी काम पर जाता
और लौट आता सकुशल



परन्तु ...



तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....


ईश्वर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को स्वर्ग में स्थान दे इसी हार्दिक श्रद्वांजलि के साथ......


गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

आकांक्षा यादव जी को हार्दिक शुभकामनायें

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा   युवा कवयित्री, साहित्यकार 


एवं चर्चित  महिला ब्लागर आकांक्षा यादव जी  को ‘’डाॅ0 अम्बेडकर 


फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया गया  है।'भारतीय 


नारी ''ब्लॉग-परिवार  की ओर से उन्हें हार्दिक शुभकामनायें .उनके ब्लोग्स


 इस प्रकार हैं -






*शब्द-शिखर’ 


*बाल-दुनिया’ 


* ‘सप्तरंगी प्रेम’ 

*उत्सव के रंग’ 

                                                                               शिखा कौशिक 


बुधवार, 14 दिसंबर 2011

समापन

भगवती शांता परम सर्ग-8

पूरी कथा के लिए 
पर आयें |
-- रविकर

आश्रम की रौनक बढ़ी, सास-ससुर खुश होंय |
सृंगी अपने शोध में, रहते  हरदम खोय ||

शांता सेवा में जुटी, परम्परा निर्वाह |
करे रसोईं चौकसी, भोजन की परवाह ||

शिष्य सभी भोजन करें, पावें नित मिष्ठान |
करें परिश्रम वर्ग में, नित-प्रति बाढ़े ज्ञान ||

वर्षा-ऋतु में पूजती, कोसी को धर ध्यान |
सृन्गेश्वर की कृपा से, उपजे बढ़िया धान ||

शांता की बदली इधर, पहले वाली चाल |
धीरे धीरे पग धरे, चलती बड़ा संभाल ||

खान-पान में हो रहा, थोडा सा बदलाव |
खट्टी चीजें भा रहीं,  बदल गए अब चाव ||

सासू माँ रखने लगीं, अपनी दृष्टी तेज |
प्रफुल्लित माता रखे,  चीजें सभी सहेज ||

पुत्री सुन्दर जन्मती, बाजे आश्रम थाल |
सेवा सुश्रुषा करे, पोसे बहुत संभाल ||

तीन वर्ष पूरे हुए, शिक्षा पूरी होय |
दीदी से मिलकर चले, बटुक अंग फिर रोय || 

फिर पूरे परिवार से, करके नेक सलाह |
माँ दादी को साथ ले, पकड़ें घर की राह || 

आश्रम इक सुन्दर बना, करते हैं उपचार |
साधुवाद है वैद्य जी, बहुत बहुत आभार ||

तीन वर्ष बीते इधर, मिला राज सन्देश |
वैद्यराज का रिक्त पद, तेरे लिए विशेष ||
 
क्षमा-प्रार्थना कर बचे, नहीं छोड़ते ग्राम |
आश्रम फिर चलता रहा, प्रेम सहित अविराम ||

रक्षाबंधन पर मिली, शांता घर पर आय |
भागिनेय दो गोद में, दीदी रही खेलाय ||

पुत्तुल के संग वो रखी, पाणिग्रहण प्रस्ताव |
मेरी सहमति है सदा, पुत्तुल की बतलाव ||

शांता लेकर बटुक को, चम्पानगरी जाय |
पुत्तुल के इनकार पर, रही उसे समझाय ||
 
नश्वर जीवन कर दिया, इस शाळा के नाम |
बस नारी उत्थान हित, करना मुझको काम ||

पुष्पा से एकांत में, मिलती शांता जाय |
वैद्य बटुक से व्याह हित, मांगी उसकी राय ||

शरमाई बाहर भगी, मिला मूल संकेत |
मंदिर में शादी हुई, घरवाला अनिकेत ||

रूपा से मिलकर हुई दीदी बड़ी प्रसन्न |
गोदी में इक खेलता, दूजा है आसन्न ||

पञ्च रत्न की सब कथा, पूछी फिर चितलाय |
डरकर नकली असुर से, भाग चार जन जाँय ||

पञ्च-रतन को एक दिन, दे अभिमंत्रित धान | 
खेती करने को कहा, देकर पञ्च-स्थान ||

बढ़िया उत्पादन हुआ, मन सा निर्मल भात |
खाने में स्वादिष्टतम, हुआ न कोई घात ||


राज काज मिल देखते, पंचरत्न सह सोम |
महासचिव का साथ है, कुछ भी ना प्रतिलोम ||


पिताश्री ने एक दिन, सबको लिया बुलाय |
पंचरत्न में चाहिए, स्वामिभक्त अधिकाय ||


चाटुकारिता से बचो, इंगित करिए भूल |
राजधर्म का है यही, सबसे बड़ा उसूल ||


लेकर सेवा भावना, देखो भाग विभाग |
पैदा करने में लगो, जनमन में अनुराग ||

मात-पिता से पूछ के, कुशल क्षेम हालात |
संतुष्टि पाती वहां, शांता वापस जात ||


कुशल व्यवस्थापक बनी, हुई भगवती माय |
पाली नौ - नौ  पुत्रियाँ,  आठो  पुत्र पढाय ||


एक से बढ़कर एक थे, संतति सब गुणवान |
शोध भाष्य करते रहे, पढ़ते वेद - पुरान ||

वैज्ञानिक वे श्रेष्ठ सब, मन्त्रों पर अधिकार |
अपने अपने ढंग से, सुखी करें संसार ||


सास-ससुर सब सौंप के, गए देव अस्थान |
राजकाज सब साध के, देकर के वरदान ||

वन खंडेश्वर को गए, बिबंडक महराज |
भिंड आश्रम को सजा, करे वहां प्रभु-काज ||

आठ पौत्रों से मिले, सब है बेद-प्रवीन |
बड़े भिंड के हो गए, आश्रम में आसीन ||
 
सौंपें सारे ज्ञान को, बाबा बड़े महान |
स्वर्ग-लोक जाकर बसे, छोड़ा यह अस्थान ||

भिन्डी ऋषि के रूप में, हुए विश्व विख्यात |
सात राज्य में जा बसे, पौत्र बचे जो सात ||

एक अवध में जा बसे, सरयू तट के पास |
बरुआ सागर आ गया, एक पुत्र को रास ||

विदिशा जाकर बस गए, सबसे छोटे पूत |
पुष्कर की शोभा बढ़ी, बाढ़ा वंश अकूत ||


आगे जाकर यह हुए, छत्तीस कुल सिंगार |
छ-न्याती भाई यहाँ, अतुलनीय विस्तार ||


बसे हिमालय तलहटी, चौरासी सद्ग्राम |
वंशज सृंगी के यहाँ, रहते हैं अविराम ||

सृंगी दक्षिण में गए, पर्वत बना निवास |
ज्ञान बाँट करते रहे, रही शांता पास ||

वंश-बेल बढती रही, तरह तरह के रूप |
कहीं मनीषी बन रमे, हुए कहीं के भूप ||


मंत्रो की शक्ती प्रबल, तंत्रों पर अधिकार |
कलियुग के प्रारब्ध तक, करे वंश व्यवहार ||


हुए परीक्षित जब भ्रमित, कलियुग का संत्रास |
स्वर्ण-मुकुट में जा घुसा, करता बुद्धी नाश  ||


सरिता तट पर एक दिन, लौटे कर आखेट |
लोमस ऋषि से हो गई, भूपति की जब भेंट ||


बैठ समाधि में रहे, राजा समझा धूर्त |
मरा सर्प डाला गले, जैसे शंकर मूर्त ||

वंशज देखें सृंग के, भर अँजुरी में नीर |
मन्त्रों से लिखते भये, सात दिनों की पीर ||


यही सर्प काटे तुम्हें, दिन गिनिये अब सात |
गिरे राजसी कर्म से, सहो मृत्यु आघात ||


मन्त्रों की इस शक्ति का, था राजा को भान |
लोमस के पैरों पड़ा, वह राजा नादान ||


लेकिन भगवत-पाठ सुन, त्यागा राजा प्रान |
यह पावन चर्चित कथा, जाने सकल जहान ||


जय जय भगवती शांता परम